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Chandrayaan 3 : भारत की चंद्रविजय, मिशन की तैयारी में लगे तीन साल 9 महीने 14 दिन

24 Aug 2023

विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर मिलकर चांद के वायुमंडल, सतह, रसायन, भूकंप, खनिज आदि की जांच करेंगे

नईदिल्ली| वैज्ञानिकों को मिलेगी भविष्य की स्टडी के लिए जानकारी| विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर मिलकर चांद के वायुमंडल, सतह, रसायन, भूकंप, खनिज आदि की जांच करेंगे। इससे इसरो समेत दुनियाभर के वैज्ञानिकों को भविष्य की स्टडी के लिए जानकारी मिलेगी। रिसर्च करने में आसानी होगी। ये तो हो गई वैज्ञानिकों के लिए फायदे की बात।


दुनिया में बढ़ा देश का मान


दुनिया में अब तक चांद पर सिर्फ तीन देश सफलतापूर्वक उतर पाए थे। अमरीका, रूस (तब सोवियत संघ) और चीन। अब भारत के चंद्रयान-3 को सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता मिलने से भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। वहीं दक्षिणी ध्रुव के इलाके में लैंडिंग कराने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा।


इसरो का डंका


इसरो दुनिया में अपने किफायती कॉमर्शियल लांचिंग के लिए जाना जाता है। अब तक 34 देशों के 424 विदेशी सेटेलाइट्स को छोड़ चुका है। 104 सेटेलाइट एकसाथ छोड़ चुका है। वह भी एक ही रॉकेट से। चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी खोजा। चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर आज भी काम कर रहा है। उसी ने चंद्रयान-3 के लिए लैंडिंग साइट खोजी। मंगलयान का परचम तो पूरी दुनिया देख चुकी है। अब इसरो का नाम दुनिया की सबसे बड़ी स्पेस एजेसियों में शामिल हो गया है।


आम आदमी का होगा भला


चंद्रयान और मंगलयान जैसे स्पेसक्राफ्ट्स में लगे पेलोड्स यानी यंत्रों का इस्तेमाल बाद में मौसम और संचार संबंधी सेटेलाइट्स में होता है। रक्षा संबंधी सेटेलाइट्स में होता है। नक्शा बनाने वाले सेटेलाइट्स में होता है। इन यंत्रों से देश में मौजूद लोगों की भलाई का काम होता है। संचार व्यवस्थाएं विकसित करने में मदद मिलती है। निगरानी आसान हो जाती है।


यूं हुई लैंडिंग


विक्रम लैंडर ने 25 किमी की ऊंचाई से चांद पर उतरने की यात्रा शुरू की। अगले स्टेज तक पहुंचने में उसे करीब 11:5 मिनट लगे यानी 7.4 किलोमीटर की ऊंचाई तक

7.4 किमी की ऊंचाई पर पहुंचने तक इसकी गति 358 मीटर प्रति सेकेंड थी। अगला पड़ाव 6.8 किलोमीटर था

6.8 किमी की ऊंचाई पर गति कम करके 336 मीटर प्रति सेकंड हो गई। अगला लेवल 800 मीटर था

800 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर के सेंसर्स चांद की सतह पर लेजर किरणें डालकर लैंडिंग के लिए सही जगह खोजने लगे

150 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की गति 60 मीटर प्रति सेकंड थी यानी 800 से 150 मीटर की ऊंचाई के बीच

60 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 40 मीटर प्रति सेकंड थी यानी 150 से 60 मीटर की ऊंचाई के बीच

10 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 10 मीटर प्रति सेकंड थी

चंद्रमा की सतह पर उतरते समय यानी सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर की स्पीड 1.68 मीटर प्रति सेकंड थी


विक्रम के चारों पेलोड्स करेंगे ये काम


रंभा

यह चांद की सतह पर सूरज से आने वाले प्लाज्मा कणों के घनत्व, मात्रा और बदलाव की जांच करेगा।

चास्टे

यह चांद की सतह की गर्मी यानी तापमान की जांच करेगा।

इल्सा

लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीय गतिविधियों की जांच करेगा।

4. लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे

यह चांद के डायनेमिक्स को समझने का प्रयास करेगा।

प्रज्ञान रोवर के पेलोड्स का काम

लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप

=यह चांद की सतह पर मौजूद केमकल्स यानी रसायनों की मात्रा और गुणवत्ता की स्टडी करेगा। साथ ही खनिजों की खोज करेगा।

अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर

यह एलिमेंट कंपोजिशन की स्टडी करेगा। जैसे- मैग्नीशियम, अल्यूमिनियम, सिलिकन, पोटैशियम, कैल्सियम, टिन और लोहा. इनकी खोज लैंडिंग साइट के आसपास चांद की सतह पर की जाएगी।


पहले चंद्रयान मिशन ने भी किया था कमाल


चंद्रयान-1 भारत का पहला चंद्र अभियान था। इसका प्रक्षेपण 22 अक्तूबर, 2008 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से हुआ था। यान में भारत, अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया निर्मित 11 वैज्ञानिक उपकरण थे, जिसने चंद्रमा के रासायनिक, खनिज विज्ञान और फोटो- भूगर्भीय मानचित्रण के लिए उसकी सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर चारों ओर परिक्रमा की थी। अभियान के सभी अहम पहलुओं के सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद मई, 2009 में कक्षा का दायरा बढ़ाकर 200 किलोमीटर कर दिया गया। उपग्रह ने चंद्रमा के आस पास 3,400 से अधिक कक्षाएं बनार्ईं।


50 वैज्ञानिकों की रात आंखों में कटी


इसरो के बंगलुरु स्थित टेलीमेट्री एंड कमांड सेंटर (इस्ट्रैक) के मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स (मॉक्स) में 50 से ज्यादा वैज्ञानिक कम्प्यूटर पर चंद्रयान-3 से मिल रहे आंकड़ों की रात भर पड़ताल में जुटे रहे। वे लैंडर को इनपुट भेजते रहे, ताकि लैंडिंग के समय गलत फैसला लेने की हर गुंजाइश खत्म हो जाए।


चंद्रयान-3 के सुपर हीरो


इनके दम पर मून मिशन मुमकिन

भारत की इस ऐतिहासिक उपलब्धि के पीछे के छह लोग हैं, जिन्होंने बिना रुके और बिना थके लगातार मेहनत की और अंतरिक्ष में तिरंगे का झंडा बुलंद किया। चंद्रयान-3 मिशन के वे गुमनाम नायक, जिनके समर्पण और कड़ी मेहनत ने भारत को गर्व करने का मौका दिया…


डा. एस सोमनाथ: बाहुबली रॉकेट डिजाइन किया


चंद्रयान-3 मिशन के पीछे सबसे प्रमुख लोगों में से एक, एस सोमनाथ हैं। इन्होंने पिछले साल इसरो का नेतृत्व संभाला और तब से इन्होंने मिशन के लिए अपना सब कुछ दे दिया। उन्होंने इस मिशन के उस बाहुबली रॉकेट के लांच व्हीकल 3 को डिजाइन किया गया है, जिसकी मदद से चंद्रयान-3 को लांच किया गया था। भारत का यह तीसरा मून मिशन है। चंद्रयान-3 के साथ-साथ उन्हें इसरो के अन्य मिशनों को भी तेजी से पूरा करने का श्रेय दिया गया है। इसरो के अन्य मिशनों में गगनयान (भारत का पहला क्रू मिशन) और आदित्य-एल1 (सूर्य का अध्ययन करने के लिए भारत का मिशन) शामिल हैं। इसरो की अध्यक्षता संभालने से पहले, एस सोमनाथ विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) के निदेशक के रूप में काम कर रहे थे और लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर में भी काम कर रहे थे, दोनों केंद्र अंतरिक्ष एजेंसी के लिए रॉकेट तकनीक विकसित कर रहे थे।


पी वीरमुथुवेल: तकनीकी ज्ञान के लिए प्रसिद्ध


चंद्रयान-3 के परियोजना निदेशक पी वीरमुथुवेल ने 2019 में इसरो में कार्यभार संभाला। वह अपने तकनीकी ज्ञान के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने चंद्रयान-2 मिशन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पी वीमुथुवेल तमिलनाडु के विल्लुपुरम के रहने वाले हैं और वह मद्रास में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी-एम) के पूर्व छात्र हैं। वह पिछले चार साल से चंद्रयान-3 मिशन पर काफी मेहनत कर रहे हैं। इन्हें चांद पर चंद्रयान 2 फ़्लोटसम और जेट्सम खोजने के लिए भी जाना गया। पी. वीरामुथुवेल को वीरा के नाम से भी जाना जाता है।


एस उन्नीकृष्णन नायर: रॉकेट के निर्माण की जिम्मेदारी


विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) में एस उन्नीकृष्णन नायर और उनकी टीम भारत के सबसे बड़े अंतरिक्ष मिशन, चंद्रयान -3 के महत्त्वपूर्ण पहलुओं का ध्यान रखती है। इस मिशन के लिए रॉकेट के डिवेलपमेंट से लेकर निर्माण की जिम्मेदारी निभाने वाले विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के डायरेक्टर हैं। वीएसएससी में उनकी टीम ने जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लांच व्हीकल (जीएसएलवी) मार्क- विकसित किया है, जिसे अब लांच व्हीकल मार्क-ढ्ढढ्ढढ्ढ नाम दिया गया है। डा. उन्नीकृष्णन पेशे से एक एयरोस्पेस इंजीनियर और भारतीय विज्ञान संस्थान के पूर्व छात्र हैं। उन्हें शॉर्ट स्टोरीज लिखना पसंद है।


एम शंकरन: सेटेलाइट तैयार करने का जिम्मा


एम शंकरन यूआर राव सेटेलाइट सेंटर (यूआरएससी) के निदेशक हैं, जिन्होंने जून, 2021 में कार्यभार संभाला था। यूआरएससी में उनकी टीम इसरो के लिए भारत के उपग्रहों के डिजाइन और निर्माण का काम संभालती है। एम शंकरन के नेतृत्व में, यूआरएससी टीम ऐसे उपग्रह विकसित करती है जो संचार, मौसम पूर्वानुमान, रिमोट सेंसिंग, नेविगेशन और ग्रहों की खोज सहित इसरो की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।


एस मोहना कुमार, मिशन निदेशक


एस मोहना कुमार एलपीएम3-एम4/चंद्रयान-3 के मिशन निदेशक हैं और वह विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। एस मोहना पहले एलपीएम3–एम3 मिशन पर वन वेब इंडिया 2 उपग्रहों के वाणिज्यिक प्रक्षेपण के निदेशक थे। एस मोहना कुमार के मुताबिक, एलवीएम3-एम4 एक बार फिर इसरो के लिए सबसे विश्वसनीय हेवी लिफ्ट वाहन साबित हुआ है। इसरो परिवार की टीम वर्क को बधाई।


ए राजराजन, लांच ऑथराइज़ेशन बोर्ड के प्रमुख


ए राजराजन सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र एसएचएआर (एसडीएससी-एसएचएआर)के निदेशक हैं, जो भारत के प्रमुख अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा में स्थित है। एसडीएससी एसएचएआर के निदेशक होने के नाते, वह इसरो लॉन्च और मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम (गगनयान) और एसएसएलवी की लॉन्चिंग का काम कर रहे हैं। ए राजराजन ने कहा कि एक बार फिर अपना काम पूरा किया और चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को कक्षा में स्थापित कर दिया है। मैं सही प्रक्षेपण के लिए सभी टीमों को बधाई देता हूं।


डा के. कल्पना: कोविड में भी मून मिशन पर डटी रहीं


डा. के. कल्पना चंद्रयान-3 मिशन की डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं। वह लंबे समय से इसरो के मून मिशन पर काम कर रही हैं। कोविड महामारी के दौरान भी उन्होंने इस मिशन पर काम करना जारी रखा। वह इस प्रोजेक्ट पर पिछले चार साल से काम कर रही हैं। डा. के. कल्पना वर्तमान में यूआरएससी की डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं।


पृथ्वी से चांद तक चंद्रयान-3 मिशन का सफर


14 जुलाई : एलवीएम-3 एम-4 व्हीकल के माध्यम से चंद्रयान-3 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक कक्षा में पहुंचाया गया। चंद्रयान-3 ने नियत कक्षा में अपनी यात्रा शुरू की।

15 जुलाई : आईएसटीआरएसी/इसरो, बंगलुरु से कक्षा बढ़ाने की पहली प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी की गई। यान 41762 किलोमीटर & 173 किलोमीटर कक्षा में है।

17 जुलाई : दूसरी कक्षा में प्रवेश की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। चंद्रयान-3 ने 41603 किलोमीटर & 226 किलोमीटर कक्षा में प्रवेश किया।

22 जुलाई : अन्य कक्षा में प्रवेश की प्रक्रिया पूरी हुई।

25 जुलाई : इसरो ने एक बार फिर एक कक्षा से अन्य कक्षा में जाने की प्रक्रिया पूरी की। चंद्रयान-3 71351 किलोमीटर & 233 किलोमीटर की कक्षा में।

एक अगस्त : इसरो ने ‘ट्रांसलूनर इंजेक्शन’ (एक तरह का तेज़ धक्का) को सफलतापूर्वक पूरा किया और अंतरिक्ष यान को ट्रांसलूनर कक्षा में स्थापित किया। इसके साथ यान 288 किलोमीटर & 369328 किलोमीटर की कक्षा में पहुंच गया।

पांच अगस्त : चंद्रयान-3 की लूनर ऑर्बिट इनसर्शन (चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने की प्रक्रिया) सफलतापूर्वक पूरी हुई। 164 किलोमीटर & 18074 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा।

छह अगस्त : इसरो ने दूसरे लूनर बाउंड फेज (एलबीएन) की प्रक्रिया पूरी की। इसके साथ ही यान चंद्रमा के निकट 170 किलोमीटर & 4313 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा। अंतरिक्ष एजेंसी ने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश के दौरान चंद्रयान-3 द्वारा लिया गया चंद्रमा का वीडियो जारी किया।

नौ अगस्त : चंद्रमा के निकट पहुंचने की एक और प्रक्रिया के पूरा होने के बाद चंद्रयान-3 की कक्षा घटकर 174 किलोमीटर & 1437 किलोमीटर रह गई।

14 अगस्त : चंद्रमा के निकट पहुंचने की एक और प्रक्रिया के पूरा होने के बाद चंद्रयान-3 कक्षा का चक्कर लगाने के चरण में पहुंचा। यान 151 किलोमीटर & 179 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा।

16 अगस्त : ‘फायरिंग’ की एक और प्रक्रिया पूरी होने के बाद यान को 153 किलोमीटर & 163 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचाया गया। यान में एक रॉकेट होता है, जिससे उपयुक्त समय आने पर यान को चंद्रमा के और करीब पहुंचाने के लिए विशेष ‘फायरिंग’ की जाती है।

17 अगस्त : लैंडर मॉडयूल को प्रणोदन मॉड्यूल से सफलतापूर्वक अलग किया गया।

19 अगस्त : इसरो ने अपनी कक्षा को घटाने के लिए लैंडर मॉड्यूल की डी-बूस्टिंग की प्रक्रिया की। लैंडर मॉड्यूल अब चंद्रमा के निकट 113 किलोमीटर & 157 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा।

20 अगस्त : लैंडर मॉड्यूल पर एक और डी-बूस्टिंग यानी कक्षा घटाने की प्रक्रिया पूरी की गई। लैंडर मॉड्यूल 25 किलोमीटर & 134 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचा।

21 अगस्त : चंद्रयान-2 ऑर्बिटर ने औपचारिक रूप से चंद्रयान-3 लैंडर मॉड्यूल का ‘वेलकम बडी’ (स्वागत दोस्त) कहकर स्वागत किया। दोनों के बीच दो तरफा संचार कायम हुआ। इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) में स्थित मिशन ऑपरेशंस कॉम्प्लेक्स (एमओएक्स) को अब लैंडर मॉड्यूल से संपर्क के और तरीके मिले।

22 अगस्त : इसरो ने चंद्रयान-3 के लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा (एलपीडीसी) से करीब 70 किलोमीटर की ऊंचाई से ली गई चंद्रमा की तस्वीरें जारी कीं। सिस्टम की नियमित जांच की जा रही है। चंद्रमा के निकट पहुंचने की प्रक्रिया सहजता से जारी है।

23 अगस्त : शाम छह बजकर चार मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल के सुरक्षित एवं सॉफ्ट लैंडिग।

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