
23 Aug 2023
चंद्रयान-3 से इसरो ने रचा इतिहास
नईदिल्ली| 40 दिन का भारत का इंतजार आखिरकार खत्म हुआ। पृथ्वी से चंद्रमा तक 3.84 लाख किलोमीटर का सफर तय करने के बाद चंद्रयान-3 का लैंडर विक्रम चंद्रमा की धरती पर कामयाबी के साथ उतर गया। इसी के साथ भारत चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला रूस, अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा देश बन गया है। वहीं, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। अब नजरें प्रज्ञान रोवर पर है, जो स्थितियां सामान्य होने के बाद चांद की सतह पर चलेगा। इसके एक पहिये पर इसरो का चिह्न और दूसरे पहिये पर अशोक स्तंभ उकेरा हुआ है। जैसे ही प्रज्ञान रोवर चलना शुरू करेगा, इसरो का चिह्न और अशोक स्तंभ चंद्रमा की सतह पर अंकित हो जाएगा।
चंद्रयान-3 के लिए अब अगले कुछ पड़ाव महत्वपूर्ण हैं
1. रोवर बाहर आएगा
2. 14 दिन क्या होगा
3. इसरो को क्या जानकारी भेजेगा
चंद्रयान-3 ने कैसे रच दिया इतिहास?
इसरो के अधिकारियों के मुताबिक, चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा। यह चंद्रयान-2 की तरह ही दिखता है, जिसमें एक लैंडर और एक रोवर शामिल किए गए हैं। चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया है।
मिशन ने 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा केन्द्र से उड़ान भरी और योजना के अनुसार आज चंद्रमा पर उतरा। यह मिशन भारत को अमेरिका, रूस और चीन के बाद चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया।
पिछले दो मिशन
चंद्रयान-1
यह अक्तूबर 2008 में भेजा गया था। चंद्रमा पर पानी की संभावना की खोज कर यह इतिहास रच चुका है। इसी के बाद विश्व की तमाम अंतरिक्ष एजेंसियों की चंद्रमा को लेकर उत्सुकता बढ़ गई।
चंद्रयान-2
जुलाई 2019: यह यान आज भी चंद्रमा की सौ किलोमीटर की कक्षा में घूम रहा है। इसे एक साल तक ही चलना था, लेकिन अब तक यह हमें जानकारी भेज रहा है। इसमें विश्व का सबसे बेहतरीन कैमरा लगा है, जो चंद्रमा के लगभग हर हिस्से की तस्वीरें ले चुका है।
चंद्रयान-3 का लैंडर मॉड्यूल (एलएम) आज चंद्रमा की सतह पर उतर गया। इसके साथ ही भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश भी बन गया। पूरी दुनिया इस ऐतिहासिक पल का टकटकी लगाए इंतजार कर रही थी। लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) से युक्त लैंडर मॉड्यूल ने शाम छह बजकर चार मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर सॉफ्ट लैंडिंग की।
इस बीच यह भी जानने की उत्सुकता हो रही है कि आखिर भारत ने यह उपलब्धि कैसे हासिल की। आइये जानते हैं
उन पांच वजहों को जिनसे हमारा मिशन कामयाब रहा...
2019 के चंद्रयान-2 मिशन से सबक लिया
चंद्रयान-3 से पहले 22 जुलाई 2019 को चंद्रयान-2 लॉन्च किया गया था। यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश करने वाला किसी भी देश का पहला अंतरिक्ष मिशन था। हालांकि, चंद्रयान-2 मिशन का विक्रम चंद्र लैंडर छह सितंबर 2019 को चंद्रमा पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
इसरो के वैज्ञानिकों ने मिशन से भी काफी कुछ सीखा। इसरो के प्रमुख एस. सोमनाथ कहते हैं कि 2019 का मिशन चंद्रयान-2 आंशिक सफल था, लेकिन इससे मिले अनुभव इसरो के चंद्रमा पर लैंडर उतारने के लिए नए प्रयास में काफी उपयोगी साबित हुए। इसके तहत चंद्रयान-3 में कई बदलाव किए गए।
चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह पर नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया।
लैंडर में पांच की जगह चार इंजन लगाए गए
चंद्रयान-2 के लैंडर में पांच इंजन लगे थे जबकि इस बार भार कम करने के लिए चंद्रयान-3 में चार इंजन लगाए गए। चंद्रयान-3 में लेजर डॉपलर वेलोसिमिट्री के साथ चार इंजन लगाए गए जिसका उद्देश्य था कि वह चंद्रमा पर उतरने के सभी चरणों में अपनी ऊंचाई और अभिविन्यास को नियंत्रित कर सके।
लैंडर के पांव पहले के मजबूत बनाए गए
चंद्रयान-3 में किसी भी अप्रत्याशित प्रभाव से निपटने के लिए पैरों को मजबूत किया गया। इसके साथ अधिक उपकरण, अपडेटेड सॉफ्टवेयर और एक बड़ा ईंधन टैंक लगाए गए। ऐसा इसलिए किया गया था कि यदि अंतिम मिनट में कोई बदलाव भी करना पड़ा तो ये उपकरण उस स्थिति में महत्वपूर्ण हो सकें।
लैंडिग का क्षेत्रफल बढ़ाया गया
इसरो ने चंद्रयान-2 से सीखते हुए चंद्रयान-3 में व्यापक बदलाव किए। चंद्रयान-2 के उतरने के लिए जितना क्षेत्र निर्धारित किया गया था, उसमें काफी इजाफा किया गया। लैंडिंग के लिए लगभग 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तय किया गया।
अल्टरनेट लैंडिंग की सुविधा से लैस किया गया
इसरो ने परीक्षण के दौरान यह तय कर लिया था कि अगर लैंडिंग के लिए एक जगह सही नहीं लगी तो दूसरी जगह भी तैयार रहेगी। चंद्रयान-3 को टारगेट स्थल से आगे-पीछे ले जाने की व्यवस्था की गई। एक किलोमीटर के दायरे में उसकी सुरक्षित लैंडिंग हो सके, इसे पहले ही तय किया गया। चंद्रयान-3 के लिए समतल जगह का चयन किया गया है। ऐसा इसलिए कि अगर उस वक्त कोई पदार्थ बीच राह में आया तो भी चंद्रयान का संतुलन नहीं बिगड़ने दिया जाएगा।
साउथ पोल क्यों है खास?
विशेषज्ञों की मानें तो चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंडिंग करना चुनौतियों से भरा है. यहां अंधेरा ज्यादा होने की वजह से किसी भी देश ने अपना यान नहीं उतारा है. दक्षिणी ध्रुव के सबसे नजदीक अगर किसी देश ने अपना यान उतारा तो वह अमेरिका है. 10 जनवरी 1968 में अमेरिका ने सर्वेयर-7 स्पेसक्राफ्ट को साउथ पोल के पास उतारा था, लेकिन ये जगह चंद्रयान-3 के लैंडिंग स्पॉट से काफी दूर है.
शाम को ही क्यों की गई चंद्रयान-3 की लैंडिंग
दरअसल, चंद्रयान-3 की शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग कराई जाएगी. यह समय धरती पर शाम का होगा लेकिन चांद पर उस समय सूरज उग रहा होगा. इसरो के चीफ ने बताया कि यह समय इसलिए चुना गया है कि ताकी लैंडर को 14 से 15 दिन सूरज की रोशनी मिल सके. इससे लैंडर के जरिए सारे साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट्स करने में आसानी होगी. तस्वीरें भी साफ आ सकेंगी|
उन्होंने बताया कि विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को इस तरह डिजाइन किया गया है कि वो सूरज की रोशनी से ऊर्जा लेकर चांद पर 1 दिन बिता सके. बता दें कि चंद्रमा पर एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है. भारत 2026 से पहले चंद्रमा के अंधेरे वाले क्षेत्रों का पता लगाने के लिए जापान के साथ एक ज्वाइंट लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन (Lupex) मिशन की योजना भी बना रहा है. चंद्रमा पर दुनिया भर का जो फोकस हो रहा है उसका कारण पानी बताया जा रहा है|
डॉ सुमित्रा अग्रवाल
यूट्यूब वास्तु सुमित्रा