
18 Sept 2023
इंजिनियर पद और अमेरिका से भी सिर्फ परम्परा को जीवित रखने आ जाते है खरगोनकर पीढ़ी के सदस्य
इंदौर(शैलेंद्र कश्यप)| शहर में ऐसा परिवार है, जो दो सौ साल से राजबाड़ा में विराजित होने वाली गणेश प्रतिमा का निर्माण करता आ रहा है। इस परिवार के पास न तो कोई नाप है न कोई सांचा, फिर भी प्रतिमा में पीढ़ियों बाद भी नहीं आया फर्क पूर्वजों ने जो मूर्ति की डिजाइन और आकार रखा था वह आज भी कायम है। यहां गजानन अपने आप आकार लेते जाते हैं।
मूर्तिकार श्याम खरगोणकर बताते हैं, मां अहिल्या के समय से उनका परिवार गणेश प्रतिमा का निर्माण कर रहा है। हर साल जो प्रतिमा राजबाड़ा में विराजित की जाती है वह एक समान होती है। होलकर परिवार के लिए चार प्रतिमा विधि-विधान से बनाई जाती हैं। साथ ही पुराने जमीदार के लिए विशेष मुहूर्त में बसंत पंचमी से निर्माण शुरू होता है। गणेशजी को लड्डू का भोग लगाकर उनका आव्हान किया जाता है। इसके बाद मूर्ति गढ़ी जाती हैं जिसमे आकार पुराने वैभव में साकार होता जाता है|
सातवीं पीढ़ी को भी नही पड़ी कभी सीखने की जरुरत
राजबाड़ा मे विराजित करने के लिए खरगोणकर परिवार द्वारा पीढ़ियों से बनाई जाने वाली प्रतिमा में नहीं आता फर्क
ईको फ्रैंडली मूर्ति की शुरुआत
होलकर परिवार के समय से ही नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए ईको फ्रैंडली प्रतिमा ही बनाई जाती है। पीली मिट्टी खोदकर लाने के लिए भी मुहूर्त निकालते हैं। उन पर वाटर कलर ही करते हैं, जो पानी में जाते ही घुल जाते हैं।
200 साल से राजसी ठाठ से विराजे हैं होलकर के गणपति
इंदौर में गणपति उत्सव का इतिहास 200 साल से ज्यादा पुराना है। गणपति उत्सव धूमधाम से मनाने की परंपरा रही है, जो पांच दिन मनाया जाता है।
इंदौर होलकर स्टेट में गणेश उत्सव मनाने की गौरवशाली परंपरा का निर्वहन अब भी गणपति स्थापना व पूजन के साथ हो रहा है। गणपति अब भले ही राजबाड़ा के गणेश हॉल के बजाय मल्हार मार्तंड मंदिर के अपेक्षाकृत छोटे प्रांगण में विराजते हों, लेकिन उनके राजसी ठाठ अब भी देखते ही बनते हैं। होलकर स्टेट के कुल देवता मल्हार मार्तंड के मंदिर के सामने चौकी पर इंदौर के राजा गणपति पांच दिन के लिए विराजते हैं। तीसरे दिन उनके साथ महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित की जाती है। पांचवें दिन गौरी-गणेश विसर्जन किया जाता है।
दो बैंड व हाथी की सलामी
होलकर स्टेट में गणपति की मूर्ति स्थापना के लिए शनि गली खरगोनकर बाड़ा से विशेष रूप से तैयार गणपति की मूर्ति लेने के लिए दो बैंड, हाथी, घुड़सवार पुलिस, पैदल लश्कर के साथ बग्घी लेकर जाते थे। हाथी व बैंड की सलामी के बाद बग्घी में गणपति को लाया जाता था। होलकर स्टेट के राजबाड़ा में स्थापित होने वाली मूर्ति ठोस मिट्टी की बनी होती है। परंपरागत रूप से गणपति की मूर्ति तराशने व निर्माण का कार्य खरगोनकर परिवार ही कर रहा है।
गणेश पहनते हैं होलकर पगड़ी
राजबाड़ा के गणेश थोड़े अलग हैं। उन्हें होलकर पगड़ी पहनाई जाती है, अलग तरीके से सजाया जाता है, जिसमें वे राजसी दिखते हैं। राजबाड़ा में गणपति की दो मूर्तियां लाई जाती हैं। छोटे गणेश राजपरिवार के लिए, जबकि बड़े गणेश आम लोगों के पूजन के लिए। पूजन के समय हमें अंगरखा पहनना पड़ता है।
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