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शहर से गायब हुए कौवे, श्राद्ध पक्ष में है भोजन कराने का महत्व लेकिन अब नजर नहीं आते

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श्राद्ध पक्ष शुरू हो चुका हैं तथा पितरों का तर्पण कार्यक्रम हो रहा है और इस समय में कौओ को खाना डाला जाता है लेकिन वे कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। पर्यावरण के जानकारों का कहना है कि धीरे धीरे यह पक्षी कम होता जा रहा है।


उल्लेखनीय है कि शास्त्रों के अनुसार पक्षी कौवे को पितरों का प्रतीक माना जाता है और यह भी कहा जाता है कि कौओं की उम्र काफी अधिक होती है। आज से 10 साल पहले उज्जैन में कौवे दिखते थे लेकिन शहरी क्षेत्र से पूरी तरह से गायब हो चुके हैं। वर्तमान में कबूतर बड़ी तादाद में नजर आते हैं और विभिन्न चिडिय़ाएँ भी दिखती हैं लेकिन वर्ष में श्राद्ध पक्ष का समय ऐसा होता है जब लोग कौओं को विधि विधान अनुसार भोजन कराते हैं। कुछ समय पहले कौओं की काँव-काँव सुनाई देती थी लेकिन समय के साथ-साथ यह पक्षी लुप्त हो रहा है और इस श्राद्ध में भी उसकी याद आ रही है तथा कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि कौए गंदगी नष्ट करते हैं और सड़े गले जानवर खाते हैं तथा वे एक तरह से सफाई कर्मी होते हैं लेकिन पर्यावरणविदों के अनुसार यह पक्षी धीरे-धीरे कम हो रहा है और शहरी क्षेत्र में दिखाई नहीं देता। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कौओ समूह में रहता है और उसकी एक आँख होती है। उज्जैन शहर अत्यंत प्राचीन है और अवंति स्कंद पुराण में इसका उल्लेख है और यहाँ श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है और ब्राह्मणों के साथ पक्षी कौओं को भी भोजन कराया जाता है। कौओं की प्रजाति पिछले कुछ वर्षों से लगातार लुप्त हो रही है। पहले नदी क्षेत्र में कौए दिखाई देते थे लेकिन वहाँ से भी गायब हो गए हैं।

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