
12 Aug 2023
जानिए हिन्दू धर्म में गायत्री मंत्र का रहस्य
ईश्वर ने गायत्री मंत्र सृष्टि के प्रारंभ मैं संसार के प्रथम धर्म ग्रंथ ऋग्वेद के माध्यम से मानव मात्र के कल्याण के लिए प्रकट किया। समस्त धर्म ग्रंथों के असंख्य श्लोकों एवं वेद मंत्रों में गायत्री मंत्र ही एकमात्र ऐसा मंत्र है जिसे वेद माता गायत्री का गौरव प्राप्त है। कई धर्मगुरु इस मंत्र को गुरु दीक्षा मे भी प्रदान करते हैं इसलिए गायत्री मंत्र को गुरु मंत्र भी कहा जाता है। गायत्री मंत्र का उल्लेख चारों वेदों मे आया है। गायत्री मंत्र का सीधा सरल शाब्दिक अर्थ है "सच्चिदानंद सकल जगत उत्पादक प्रकाशकों के प्रकाशक परमेश्वर के सर्वश्रेष्ठ पाप नाशक तेज का हम ध्यान करते हैं वह परमेश्वर हमारी बुद्धि और कर्मों को उत्तम प्रेरणा करे"।
गायत्री मंत्र के अर्थ मे क्या कहीं भी ऐसा प्रतीत होता है कि जिसमें महिलाओं के लिए मंत्र पाठ का निषेध हो? गायत्री मंत्र मे ईश्वर से बुद्धि के लिए प्रार्थना की गई है। तो क्या ईश्वर से बुद्धि मांगने का अधिकार सिर्फ पुरुषों को ही है? क्या ईश्वर स्त्री और पुरुष मे भेद करता है? ऋग्वेद सहित चारों वेद उपनिषद कहीं पर भी ऐसा प्रमाण नहीं है कि महिलाओं को गायत्री मंत्र का पाठ नहीं करना चाहिए।
प्राचीन काल मे भी गार्गी मैत्रेयी जैसी विदुषी स्त्रियां हुई है जिन्होंने याज्ञवल्क्य जैसे महर्षि से शास्त्रार्थ किया तथा ब्रह्मवादिनी सुलभा ने महाराजा जनक जैसे वैराग्य वान को निरुत्तर कर दिया। साथ ही सरस्वती,उर्वशी, इंद्राणी, शची, लोपामुद्रा जैसे कई मंत्र दृष्टा ऋषिकाएं हुई है। रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी को ज्ञान देने वाली भी तो उनकी धर्मपत्नी ही थी। आदि गुरु शंकराचार्य एवं मंडन मिश्र के बीच 42 दिन तक चले शास्त्रार्थ मे भी निर्णायक भूमिका मंडनमिश्र की धर्मपत्नी देवी उभय भारती की ही थी। प्राचीन काल मे भी कन्या गुरुकुल चलाए जाते थे जिनमे कन्याओं का उपनयन कर वेद अध्ययन कराया जाता था। अन्यथा माता अनुसूया भगवती सीता जैसी विदुषी नारियां किस प्रकार बन पाती।
हमारी सनातन संस्कृति मे नारी का दर्जा पुरुष से भी ऊंचा है। यहां नारी को नारायणी का दर्जा दिया गया है। मनुस्मृति में कहा गया है यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:। अर्थात जहां पर नारी का सम्मान हो वहां देवताओं का वास होता है। बिना नारी के तो यज्ञ भी संपूर्ण नहीं माना जाता।
आजकल कुछ धर्म धुरंधर कहते हैं की महिलाएं गायत्री मंत्र का पाठ नहीं कर सकती क्योंकि उन्हें यज्ञोपवीत का अधिकार नहीं है। तो उनका ध्यान में कुछ प्रमाणों की ओर आकृष्ट करना चाहूंगा गोभिल गृह्यसूत्र(2 /1 /19- 21) "प्रवृतां यज्ञोपवीतिनीम् अभ्युदानयन् जपेत्। सोमो आददत् गंधर्वाय इति"। अर्थात- कन्या को वस्त्र पहने हुए यज्ञोपवीत धारण किए हुए पति के निकट लाएं। महाकवि बाणभट्ट द्वारा महाकाव्य कादम्बरी में महाश्वेता के लिए उल्लेख है "ब्रह्मसू्त्रेण पवित्रिकृतकायाम"। अर्थात जिसका शरीर ब्रह्म सूत्र धारण करने से पवित्र था। ऐसे असंख्य प्रमाण शास्त्रों में मिल जाएंगे।
स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी कहां गया है तो फिर आधा अंग शुद्ध और आधा अशुद्ध कैसे हो गया? यदि महिलाएं अशुद्ध है तो उनसे जन्म लेने वाला पुरुष शुद्ध कैसे हो गया? एक और तो हम नारी की देवी के रूप में मंदिरों में पूजा करते हैं दूसरी और वेद माता गायत्री के मंत्रोच्चार का भी अधिकार नहीं,आखिर यह दोहरी मानसिकता क्यों?
परमानन्द राठौर गुराड़िया वर्मा