
22 Aug 2023
मंत्र उच्चारण से लेकर यज्ञ में आहुति देते समय स्वाहा बोलने तक
ऋग्वेद और अथर्ववेद के मन्त्र शीघ्रगति से, यजुर्वेद के मन्त्र मध्यम (ऋग्वेद से आधी गति) और सामवेद के मन्त्र धीमी गति (ऋग्वेद से एक तिहाही गति) से बोलने चाहिए।
व्यञ्जन ( आधे अक्षर) को पूरा न बोलें यथा तत् को तत, स्वः को सवः न बोलें। इसी प्रकार से स्वर सहित पूरे अक्षर को आधा न बोलें जैसे मम को मम्, बह्म को बह्म्। ये अशुद्ध उच्चारण हैं।
दीर्घ अक्षरों को ह्रस्व अक्षरों के समान न बोलें यथा 'भूः' का भुः, 'भूतस्य' को भुतस्य, 'पृथिवी' को पृथिवि न बोलें।
जो शब्द जैसे लिखा हो उसे वैसा ही बोलें यथा 'भुवः' को भवहू और 'करतलकरपृष्ठे' को कर्तत्कपृष्ठे न बोलें। 'यो३स्मान्' में आये इस ३ स्वर चिह्न को विलुप्त न बोलें।
( । ) पूर्ण विराम चिह्न पर जहाँ मन्त्र का एक भाग समाप्त होता है, वहाँ थोड़ा रुकें। यथा ओम् अग्नये स्वाहा । इदं .... यहाँ ( । ) विराम चिह्न पर रुकें। और जहाँ मन्त्र के मध्य में (-) ऐसा चिह्न आये वहाँ पर भी थोड़ा सा रुकें, यथा 'इदमग्नये इदन्न मम' यहाँ (-) इस चिह्न पर थोड़ा सा रुकें।
वेद मन्त्र के अन्तिम भाग को भी उसी गति से बोलें, जिस गति से पहले भाग को बोला गया है यथा 'ओम् अग्नये स्वाहा । इदमग्नये इदन्न मम।' यहाँ 'इदमग्नये - इदन्न मम' को शीघ्र न बोलें अपितु पूर्वगति के समान धीरे-धीरे ही बोलें।
दो पृथक शब्दों को मिलाकर ( एक बनाकर ) न बोलें । यथा 'स दाधार' को सदाधार तथा 'स नो' को सनो बोलना अशुद्ध है।
ऋ अक्षर को र वा रि के समान न बोलें यथा 'हृदयम्' को हिरदयम्, 'सृष्टि' को सरिष्टि या सिरष्टि बोलना अशुद्ध है।
एक कर्म के मन्त्र समूह यथा 'ईश्वरस्तुतिप्रार्थनोपासना', 'स्वस्तिवाचन', 'शान्तिकरण', 'अघमर्पण', 'मनसापरिक्रमा', 'उपस्थान' आदि में आये मन्त्रों के प्रथम मन्त्र के पूर्व ही “ओ३म्” का उच्चारण करें, न कि प्रत्येक मन्त्र के पूर्व उस ओ३म् को 'लुत' लम्बा करके भी बोलें।
किसी भी मन्त्र से यज्ञ में आहुति देते समय मन्त्र के अन्त में 'स्वाहा' ही बोलें। स्वाहा से पूर्व 'ओ३म्' को न जोड़े।