top of page

जानिए नवरात्रि में माँ दुर्गा की उपासना का वैज्ञानिक महत्त्व

11 Apr 2024

मानव शरीर में सुप्तावस्था में रहता है शून्य तत्व

परिवर्त्तनों के साथ चान्द्र चैत्र और आश्विन माह में नवरात्र त्योहार मनाने के पीछे आध्यात्मिक महत्व है ही किन्तु ऋतु परिवर्तन से जुड़े वैज्ञानिक महत्ता भी है जो कदाचित अदभुद रहस्य है -


वैदिक व वैज्ञानिक रूप में नौ प्रकार की विद्युत् धाराओं की परिकल्पना नौ देवियों के रूप में की गयी है। प्रत्येक देवी एक विद्युत् धारा की साकार मूर्ति है। देवियों के आकार- प्रकार, रूप, आयुध, वाहन आदि का भी अपना रहस्य है, जिनका सम्बन्ध इन्ही ऊर्जा- तत्वों से समझना चाहिए। ऊर्जा- तत्वों और विद्युत् धाराओं की गतविधि के अनुसार प्रत्येक देवी की पूजा- अर्चना का निर्दिष्ट विधान है और इसके लिए 'नवरात्र' का योजन वेदों में बताया गया है।


वैज्ञानिकों के अनुसार ये ऊर्जाएं पृथ्वी पर उत्तरी ध्रुव की ओर से क्षरित होती हैं और पृथ्वी को यथोचित पोषण देने के बाद दक्षिणी ध्रुव की ओर से होकर निकल जाती हैं। इसी को आधुनिक विज्ञान 'मेरुप्रभा' कहता हैं। मार्च-अप्रैल और सितम्बर-अक्टूबर अर्थात् चैत्र और आश्विन माह में जब पृथ्वी का अक्ष सूर्य के साथ उचित कोण पर होता है, उस समय पृथ्वी पर अधिक मात्रा में मेरुप्रभा झरती है, जबकि अन्य समय पर गलत दिशा होने के कारण वह मेरुप्रभा लौट कर ब्रह्माण्ड में वापस चली जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि वह मेरुप्रभा में नौ प्रकार के उर्जा- तत्व विद्यमान हैं। प्रत्येक ऊर्जा तत्व अलग- अलग विद्युत् धारा के रूप में परिवर्तित होते हैं। वे नौ प्रकार की विद्युत् धाराएँ जहां एक ओर प्राकृतिक वैभव का विस्तार करती हैं, वंही दूसरी ओर समस्त प्राणियों में जीवनी- शक्ति की वृद्धि और मनुष्यों में विशेष चेतना का विकास करती हैं। अन्तर्ग्रहीय ऊर्जा की दृष्टि से उत्तरी ध्रुव बहुत ही रहस्यमय तथा महत्वपूर्ण है। इसी 'मेरुप्रभा' की वजह से पृथ्वी तथा मनुष्य अंदर के चुम्बकत्व का कारण है। मनुष्य शरीर में रीढ़ की हड्डी के भीतर परम् शून्यता के प्रतीक सुषुम्ना यानी शून्य- नाड़ी होती है। यहां स्थित वह परम- शून्य उस परम- तत्व का ही रूप है, जो अनादि काल से मनुष्य के शरीर में सुप्तावस्था में रहता आया है। नवरात्र के दिनों में मनुष्य की चेतना और चुंबकीय शक्ति जाग्रत अवस्था में रहती है, पृथ्वी का जो चुम्बकत्व है यह उसके प्रत्येक कण को प्रभावित करता है तथा वह ब्रह्माण्ड से आने वाले अति रहस्यमय शक्ति- तत्व के प्रवाह के कारण भी यही है। मेरुदण्ड में स्थित सुषुम्ना नाड़ी में यह शक्ति- प्रवाह कार्य करता है। दूसरे शब्दों में यही शक्ति- तत्व जीवन तत्व है।


सूर्य में तेज चमक दिखती है तो, उसके एक- दो दिन बाद ही ये मेरुप्रभा तीव्र होती है। यह बढ़ी हुई सक्रियता सूर्य के विकिरण तथा कणों की बौछार का ही प्रतीक है। शान्त अवस्था में भी यह सम्बन्ध बना रहता है। ये कण अति सूक्ष्म इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन होते हैं, जो लगभग 1000 मील प्रति घण्टे की गति से दौड़ते हुए पृथ्वी तक आते हैं, जबकि प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचने में कुल 8 मिनट लेता है। प्रकाश की गति 186000 मील प्रति सेकेण्ड है। पृथ्वी की सम्बन्ध सूर्य की विद्युतीय शक्ति से है। चुम्बकत्व पार्थिव कणों में विद्युत् प्रवाह के कारण होता है। इसीलिए पृथ्वी की चुम्बकीय क्षमता सूर्य के ही कारण है और सूर्य को शक्ति प्राप्त होती है अन्तर्ग्रहीय विद्युत् ऊर्जा तरंगों से, जिनका मूल स्रोत है।


सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते:।

भयेभ्यस्त्राहिनो देवि, दुर्गे देवि नमोस्तुते।।

bottom of page