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पितृ पक्ष से सम्बंधित आवश्यक जानकारी....

17 Sept 2022

श्राद्धों का पितरों के साथ अटूट संबंध है।

जिस 'मृत व्यक्ति' के एक वर्ष तक के सभी और्ध्व दैहिक क्रिया कर्म संपन्न हो जायें, उसी की *'पितर'* संज्ञा हो जाती है। जिस तिथि को सगे-संबंधी की मृत्यु होती है, उसी दिन उनके निमित्त श्राद्ध करना चाहिए। जिस व्यक्ति की तिथि याद ना रहे तब उसके लिए अमावस्या के दिन उसका श्राद्ध करने का विधान होता है ।


जिन व्यक्तियों की जन्मपत्री मे पितृ दोष उन्हे विधि विधान से अपने पितरों का श्राद्ध करने से पितृ दोष से मुक्ति प्राप्त होती है। साधारणत: पुत्र ही अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं। किन्तु शास्त्रानुसार ऐसा हर व्यक्ति जिसने मृतक की सम्पत्ति विरासत में पायी है और उससे प्रेम और आदर भाव रखता है, उस व्यक्ति का स्नेहवश श्राद्ध कर सकता है। विद्या की विरासत से भी लाभ पाने वाला छात्र भी अपने दिवंगत गुरु का श्राद्ध कर सकता है। पुत्र की अनुपस्थिति में पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध-कर्म कर सकता है।


पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने का भाव ही श्राद्ध है। वैसे तो हर अमावस्या और पूर्णिमा को, पितरों के लिये श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। लेकिन आश्विन शुक्ल पक्ष के 15 दिन, श्राद्ध के लिये विशेष माने गये हैं। इन 15 दिनों में अगर पितृ प्रसन्न रहते हैं, तो फिर, जीवन में, किसी चीज़ की कमी नहीं रहती। कई बार, ग़लत तरीके से किये गये श्राद्ध से, पितृ नाराज़ होकर शाप दे देते हैं। इसलिये श्राद्ध में इन 54 बातों का खास ध्यान रखना चाहिये।


*श्राद्ध की मुख्य प्रक्रिया*

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-तर्पण में दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल से पितरों को तृप्त किया जाता है।

-ब्राह्णणों को भोजन और पिण्ड दान से, पितरों को भोजन दिया जाता है।

-वस्त्रदान से पितरों तक वस्त्र पहुंचाया जाता है।

-यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है। श्राद्ध का फल, दक्षिणा देने पर ही मिलता है।


*श्राद्ध के लिये कौन सा पहर श्रेष्ठ?*

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-श्राद्ध के लिये दोपहर का कुतुप और रौहिण मुहूर्त श्रेष्ठ है।

-कुतुप मुहूर्त दोपहर 11:36AM से 12:24PM तक।

-रौहिण मुहूर्त दोपहर 12:24PM से दिन में 1:15PM तक।

-कुतप काल में किये गये दान का अक्षय फल मिलता है।

-पूर्वजों का तर्पण, हर पूर्णिमा और अमावस्या पर करें।


*श्राद्ध में जल से तर्पण ज़रूरी क्यों*

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-श्राद्ध के 15 दिनों में, कम से कम जल से तर्पण ज़रूर करें।

-चंद्रलोक के ऊपर और सूर्यलोक के पास पितृलोक होने से, वहां पानी की कमी है।

-जल के तर्पण से, पितरों की प्यास बुझती है वरना पितृ प्यासे रहते हैं।


*श्राद्ध के लिये योग्य कौन*

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-पिता का श्राद्ध पुत्र करता है। पुत्र के न होने पर, पत्नी को श्राद्ध करना चाहिये।

-पत्नी न होने पर, सगा भाई श्राद्ध कर सकता है।

-एक से ज्य़ादा पुत्र होने पर, बड़े पुत्र को श्राद्ध करना चाहिये।


*श्राद्ध कब न करें*

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- कभी भी रात में श्राद्ध न करें, क्योंकि रात्रि राक्षसी का समय है।

- दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं किया जाता है।


*श्राद्ध का भोजन कैसा हो*

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-जौ, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ है।

-ज़्य़ादा पकवान पितरों की पसंद के होने चाहिये।

-गंगाजल, दूध, शहद, कुश और तिल सबसे ज्यादा ज़रूरी है।

-तिल ज़्यादा होने से उसका फल अक्षय होता है।

-तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं।


*श्राद्ध के भोजन में क्या न पकायें*

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-चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा

-कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी

-बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, खराब अन्न, फल और मेवे


*ब्राह्णणों का आसन कैसा हो*

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-रेशमी, ऊनी, लकड़ी, कुश जैसे आसन पर भी बिठायें।

-लोहे के आसन पर ब्राह्मणों को कभी न बिठायें।


*ब्राह्मण भोजन का बर्तन कैसा हो*

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-सोने, चांदी, कांसे और तांबे के बर्तन भोजन के लिये सर्वोत्तम हैं।

-चांदी के बर्तन में तर्पण करने से राक्षसों का नाश होता है।

-पितृ, चांदी के बर्तन से किये तर्पण से तृप्त होते हैं।

-चांदी के बर्तन में भोजन कराने से पुण्य अक्षय होता है।

-श्राद्ध और तर्पण में लोहे और स्टील के बर्तन का प्रयोग न करें।

-केले के पत्ते पर श्राद्ध का भोजन नहीं कराना चाहिये।


*ब्राह्णणों को भोजन कैसे करायें*

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-श्राद्ध तिथि पर भोजन के लिये, ब्राह्मणों को पहले से आमंत्रित करें।

-दक्षिण दिशा में बिठायें, क्योंकि दक्षिण में पितरों का वास होता है।

-हाथ में जल, अक्षत, फूल और तिल लेकर संकल्प करायें।

-कुत्ते, गाय, कौए, चींटी और देवता को भोजन कराने के बाद, ब्राह्मणों को भोजन करायें।

-भोजन दोनों हाथों से परोसें, एक हाथ से परोसा भोजन, राक्षस छीन लेते हैं।

-बिना ब्राह्मण भोज के, पितृ भोजन नहीं करते और शाप देकर लौट जाते हैं।

-ब्राह्मणों को तिलक लगाकर कपड़े, अनाज और दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें।

-भोजन कराने के बाद, ब्राह्मणों को द्वार तक छोड़ें।

-ब्राह्मणों के साथ पितरों की भी विदाई होती हैं।

-ब्राह्मण भोजन के बाद, स्वयं और रिश्तेदारों को भोजन करायें।

-श्राद्ध में कोई भिक्षा मांगे, तो आदर से उसे भोजन करायें।

-बहन, दामाद और भानजे को भोजन कराये बिना, पितर भोजन नहीं करते।

-कुत्ते और कौए का भोजन, कुत्ते और कौए को ही खिलायें।

-देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं।


*कहां श्राद्ध करना चाहिये?*

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-दूसरे के घर रहकर श्राद्ध न करें। मज़बूरी हो तो किराया देकर निवास करें।

-वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ और मंदिर दूसरे की भूमि नहीं इसलिये यहां श्राद्ध करें।

-श्राद्ध में कुशा के प्रयोग से, श्राद्ध राक्षसों की दृष्टि से बच जाता है।

-तुलसी चढ़ाकर पिंड की पूजा करने से पितृ प्रलयकाल तक प्रसन्न रहते हैं।

-तुलसी चढ़ाने से पितृ, गरूड़ पर सवार होकर विष्णु लोक चले जाते हैं।


*जानिए, कितने प्रकार के होते हैं श्राद्ध*

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हिंदू धर्म में श्राद्ध पितरों को प्रसन्न करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। श्राद्ध के द्वारा हम अपने पितरों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए धार्मिक कार्य करते हैं। हमारे धर्म ग्रंथों में श्राद्ध के भी कई प्रकार बताए गए हैं। इन सभी का महत्व भी अलग-अलग है। भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-


1- नित्य

2- नैमित्तिक

3- काम्य

4- वृद्धि

5- सपिण्डन

6- पार्वण

7- गोष्ठी

8- शुद्धर्थ

9- कर्मांग

10- दैविक

11- यात्रार्थ

12- पुष्टयर्थ


*श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं*

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1- तर्पण-- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।


2- -भोजन व पिण्डदान-- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्डदान भी किए जाते हैं।


3- वस्त्रदान-- वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।


4- दक्षिणादान-- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता।


पितरों का उद्धार

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भगवान शिव अपने पुत्र से कहते हैं: कार्तिकेय ! संसार में विशेषतः कलियुग में वे ही मनुष्य धन्य हैं, जो सदा पितरों के उद्धार के लिये श्रीहरि का सेवन करते हैं । बेटा ! बहुत से पिण्ड देने और गया में श्राद्ध आदि करने की क्या आवश्यकता है। वे मनुष्य तो हरिभजन के ही प्रभाव से पितरों का नरक से उद्धार कर देते हैं। यदि पितरों के उद्देश्य से दूध आदि के द्वारा भगवान विष्णु को स्नान कराया जाय तो वे पितर स्वर्ग में पहुँचकर कोटि कल्पों तक देवताओं के साथ निवास करते हैं। - पद्मपुराण

*श्राद्धकर्म*

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अगर श्राद्धकर्म करने के लिए आपके पास बिल्कुल भी धन नहीं है तो आपको उधार मांगकर धन लेना चाहिए और श्राद्ध करना चाहिए। अगर आपको कोई उधार नहीं दे रहा तो पितरों के उद्देश्य से पृथ्वी पर भक्ति विनम्र भाव से सात आठ तिलों से जलाञ्जलि ही दे दें। अगर यह भी संभव नहीं तो कहीं से चारा लाकर गौ को खिला दें। और अगर इतना भी संभव नहीं तो अपनी बगल दिखाते हुए सूर्य तथा दिक्पालों से कहें ।


*"न मेऽस्ति वित्तं न धनं न चान्यच्छ्राद्धोपयोग्यं स्वपितॄन्‌नतोऽस्मि ।*

*तृप्यन्तु भत्त्या पितरो मयैतौ कृतौ भुजौ वर्त्मनि मारुतस्य ।।"*

'मेरे पास श्राद्धकर्म के योग्य न धन-संपति है और न कोई अन्य सामग्री। अत: मै अपने पितरों को प्रणाम करता हूँ। वे मेरी भक्ति से ही तृप्तिलाभ करे। मैंने अपनी दोनों भुजाएं आकाश में उठा रखी हैं ।


ऐसा विवरण विष्णुपुराण तृतीयांश, अध्यायः 14 तथा वराहपुराण अध्याय 13 में मिलता है।

*भरणी श्राद्ध*

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भरणी नक्षत्र के देवता यमराज होने के कारण महाभरणी श्राद्ध का विशेष महत्व है। सामान्यतः आश्विन पितृपक्ष में चतुर्थी अथवा पंचमी को ही भरणी नक्षत्र आता है। कहा जाता है लोक - लोकान्तर की यात्रा जन्म, मृ्त्यु व पुन: जन्म उत्पत्ति का कारकत्व भरणी नक्षत्र के पास है अतः भरणी नक्षत्र के दिन श्राद्ध करने से पितरों को सद्गति मिलती है। महाभरणी श्राद्ध में कहीं भी श्राद्ध किया जाए, फल गयाश्राद्ध के बराबर मिलता है। यह श्राद्ध सभी कर सकते हैं।


*भरणी नक्षत्र में श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता को उत्तम आयु प्राप्त होती है।*


भरणी नक्षत्र में ब्राह्मण को काले तिल एवं गाय का दान करने से सद्गति प्राप्ति होती है व कष्ट कम होता है

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