
28 Aug 2022
राम‘ सिर्फ एक नाम नहीं। राम मात्र दो अक्षर नहीं। राम हमारी सांस्कृतिक विरासत है
राम हमारी की एकता और अखंडता हैं। राम हमारी आस्था और अस्मिता के सर्वोत्तम प्रतीक हैं। राम सनातन धर्म की पहचान है। राम प्रत्येक प्राणी में रमा हुआ है ।
राम चेतना और सजीवता का प्रमाण है। अगर राम नहीं तो जीवन मरा है। इस नाम में वो ताकत है कि मरा-मरा करने वाला राम-राम करने लगता है। इस नाम में वो शक्ति है जो हजारों-लाखों मंत्रों के जाप में भी नहीं है।
राम का अर्थ है *‘प्रकाश’*। *किरण एवं आभा जैसे शब्दों के मूल में राम है।* ‘रा’ का अर्थ है आभा और ‘म’ का अर्थ है मैं, मेरा और मैं स्वयं। अर्थात मेरे भीतर प्रकाश, मेरे ह्रदय में प्रकाश। ''बलशालियों में बलशाली हैं राम, लेकिन राम से भी बढ़कर राम का नाम''…
‘राम’ यह शब्द दिखने में जितना सुंदर है उससे कहीं महत्वपूर्ण इसका उच्चारण है। राम मात्र कहने से शरीर और मन में अलग ही तरह की प्रति क्रिया होती है जो हमें आत्मिक शांति देती है। हजारों संतों-महात्माओं ने राम नाम जपते-जपते मोक्ष को पा लिया।
''रमंति इति रामः''* जो रोम-रोम में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है। वही राम है। राम जीवन का मूल मंत्र है। राम मृत्यु का मंत्र नहीं, राम गति का नाम है। राम थमने-ठहरने का नाम नहीं, राम सृष्टि की निरंतरता का नाम है। राम महादेव के आराध्य हैं।
महादेव काशी में मृत्यु शय्या पर पड़े व्यक्ति को राम नाम सुनाकर भवसागर से तार देते हैं। भगवान शिव के हृदय में सदा विराजित राम हमारे जीवन के कण-कण में रमे हैं। राम ‘महामंत्र’ है… राम नाम ही परमब्रह्म है…
अनेकानेक संतों ने निर्गुण राम को अपने आराध्य रूप में प्रतिष्ठित किया है। कबीरदासजी ने कहा है- आत्मा और राम एक है- आतम राम अवर नहिं दूजा। राम नाम कबीर का बीज मंत्र है। रामनाम को उन्होंने “अजपा जप” कहा है।
यह एक चिकित्सा विज्ञान आधारित सत्य है* कि हम 24 घंटों में लगभग 21,600 श्वास भीतर लेते हैं और 21,600 उच्छावास बाहर फेंकते हैं। इस का संकेत कबीर जी ने इस उक्ति में किया है- *सहस्र इक्कीस छह सै धागा, निहचल नाकै पोवै।
अर्थात- मनुष्य 21,600 धागे नाक के सूक्ष्म द्वार में पिरोता रहता है। अर्थात प्रत्येक श्वास-प्रश्वास में वह राम का स्मरण करता रहता है। स्कंद पुराण में वेद व्यास महाराज जी कहते हैं कि जो लोग राम-राम मंत्र का उच्चारण करते हैं।
खाते-पीते, सोते, चलते और बैठते समय, सुख में या दुख में राम मंत्र का जाप करते हैं, उन्हें दुख, दुर्भाग्य व व्याधि का भी भय नहीं रहता। प्रभु श्रीराम सभी प्रकार के सुखों देने वाले स्वामी हैं। दीन-दुखी पर दया करने वाले कृपालु हैं।
रमते योगितो यास्मिन स रामः
अर्थात्- योगीजन जिसमें रमण करते हैं वही राम हैं। इसी तरह ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है – *राम शब्दो विश्ववचनों, मश्वापीश्वर वाचकः* अर्थात् ‘रा’ शब्द परिपूर्णता का बोधक है और ‘म’ परमेश्वर वाचक है।
चाहे निर्गुण ब्रह्म हो या दाशरथि राम हो, विशिष्ट तथ्य यह है कि राम शब्द एक महामंत्र है। राम नाम का ‘महामंत्र’ आपको जीवन की सभी परेशानियों से बचता है… “श्री राम जय राम जय जय राम” मंत्र आपने कई बार सुना होगा और भजन आदि के समय इसका जाप भी किया होगा ।
लेकिन आपको इसकी शक्ति का शायद पता ना हो। इस मंत्र में इतनी शक्ति है कि आपको कितनी भी बड़ी दुविधा से निकाल सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसके उच्चारण या कहें जाप करने के लिए किसी नियम का पालन करने की आवश्यकता नहीं है।
इस मंत्र को आप कभी ओर कहीं भी हों, जाप कर सकते हैं।मंत्र की महिमा- इसमें ‘श्री’, ‘राम’ और ‘जय’ तीन शब्दों का एक खास क्रम में दुहराव हो रहा है। ‘श्री’ का यहां अर्थ लक्ष्मी स्वरूपा ‘सीता’ या शक्ति से है, वहीं राम शब्द में ‘रा’ का तात्पर्य ‘अग्नि’ से है… ‘अग्नि’ जो ‘दाह’ करने वाला है ।
तथा संपूर्ण दुष्कर्मों का नाश करती है। ‘म’ यहां ‘जल तत्व’ का प्रतीक है। जल को जीवन माना जाता है, इसलिए इस मंत्र में ‘म’ से तात्पर्य जीवत्मा से है। इसलिए इस मंत्र का संपूर्ण अर्थ यह जाता है कि वह शक्ति जो संपूर्ण दूषित कर्मों का नाश करते हुए जीवन का वरण करती हो।
आत्मा पर विजय प्राप्त करती हो। इसलिए कोई भी इस मंत्र का नियमित रूप से जाप करता है वह जहां अचानक आने वाली परेशानियों से बचा रहता है, जीवन की कोई भी मुश्किल उसकी उन्नति में बाधा नहीं बनती.राम नाम निर्विवाद रूप से सत्य है ।
राम नाम के निरंतर जाप से सद्गति प्राप्त होती है। राम नाम की इस अद्भुत महिमा को श्रीरामचरितमानस के माध्यम से तुलसीदासजी ने अनेक कथा प्रसंगों में प्रकट किया है...हमारी अंतिम यात्रा के समय भी इसी ‘राम नाम सत्य है’ के घोष ने हमारी जीवनयात्रा पूर्ण की है।