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पापों से मुक्ति दिलाती है ऋषि पंचमी

19 Sept 2023

ऋषि पंचमी व्रत की विधि और महत्व

हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल ऋषि पंचमी का व्रत 20 सितंबर को रखा जाएगाहिंदू धर्म में ऋषि पंचमी के व्रत का विशेष महत्व बताया गया है इस दिन सप्त ऋषि की पूजा की जाती है, यह व्रत खासतौर से महिलाएं रखती हैं| भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन ऋषि पंचमी का व्रत रखा जाता है।


हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार ऋषि पंचमी व्रत महिलाओं के मासिक धर्म से जुड़ा है


ऐसी मान्यता है कि मासिक धर्म के दौरान अगर महिलाओं से जाने अनजाने में कोई गलती हो जाए तो इस व्रत को रखकर वे सभी दोषों से मुक्ति पा सकती हैं। ऋषि पंचमी को भाई पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। जानकारी के मुताबिक इस दिन माहेश्वरी समाज राखी का त्योहार मनाता हैं।


पापों से मुक्ति दिलाती है ऋषि पंचमी


हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी का विशेष महत्व है। यह दिन मुख्यतः सप्तऋषियों को समर्पित है। इस दिन व्रत किया जाता है। इस व्रत में ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने का बड़ा महत्व है। माना जाता है कि जीवन में जाने-अनजाने में कोई गलती हुई हो तो ऋषि पंचमी के व्रत द्वारा उससे मुक्ति पाई जा सकती है।


ऋषि पंचमी व्रत की विधि


हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी मनाई जाती है। आमतौर पर ऋषि पंचमी हरतालिका तीज के दो दिन बाद और गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाई जाती है। इस साल ऋषि पंचमी 20 अगस्त को मनाई जाएगी। ऐसा माना जाता है कि इन दिन व्रत रखने से व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पा लेता है। ऐसे में आइए जानते हैं क्या है ऋषि पंचमी व्रत की विधि।


ऋषि पंचमी का महत्व


महिलाओं के लिए यह व्रत काफी महत्वपूर्ण माना है। ऐसा माना जाता है कि मासिक धर्म के दौरान रसोई या खाना बनाने का काम करने से रजस्वला दोष लग सकता है। ऐसे में ऋषि पंचमी के व्रत द्वारा इस दोष से मुक्ति पाई जा सकती है।


ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और सप्तऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही यह भी मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। यदि गंगा में स्नान करना संभव नहीं है तो आप घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर स्नान कर सकते हैं।


ऋषि पंचमी पूजा मुहूर्त


पंचमी तिथि का प्रारम्भ 19 सितम्बर, मंगलवार दोपहर 01 बजकर 43 मिनट पर होगा। वहीं इसकी समापन 20 सितंबर को दोपहर 02 बजकर 16 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, ऋषि पंचमी का व्रत 20 सितंबर को किया जाएगा और व्रत की पूजा का मुहूर्त सुबह 11 बजकर 19 मिनट से 01 बजकर 45 मिनट तक रहेगा।


व्रत की विधि


ऋषि पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाए। इसके बाद घर और मंदिर की अच्छे से सफाई करें। इसके बाद पूजन की सामग्री जैसे धूप, दीप, फल, फूल, घी, पंचामृत आदि एकत्रित करके एक चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं। चौकी पर सप्तऋषि की तस्वीर लगाएं।


आप चाहें तो अपने गुरु की तस्वीर भी स्थापित कर सकते हैं। अब उन्हें फल-फूल और नैवेद्य आदि अर्पित करते हुए अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करें। इसके बाद आरती करें और प्रसाद सभी में वितरित करें। इस दिन बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद भी जरूर लेना चाहिए।


ऋषि पंचमी व्रत से जुड़ी कथा


सत्ययुग में श्येनजित् नामक एक राजा का राज्य था। उस राजा के राज्य में सुमित्र नाम का एक ब्राह्मण रहता था। जोकि वेदों का विद्वान था। सुमित्र खेती करके अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। उसकी पत्नी का नाम जयश्री सती थी, जो कि साध्वी और पतिव्रता थी। वह खेती के कामों में भी अपने पति का सहयोग किया करती थी। एक बार उस ब्राह्मण की पत्नी ने रजस्वला अवस्था में अनजाने में घर का सब काम किया और पति का भी स्पर्श भी कर लिया। दैवयोग से पति-पत्नी का शरीरान्त एक साथ ही हुआ। रजस्वला अवस्था में स्पर्शा का विचार न रखने के कारण स्त्री को कुतिया और पति को बैल की योनि की प्राप्ति हुई। परंतु पहले जन्म में किये गये अनेक धार्मिक कार्य के कारण उनका ज्ञान बना रहा। संयोग से इस जन्म में भी वह साथ-साथ अपने ही घर में अपने पुत्र और पुत्रवधू के साथ रह रहे थे। ब्राह्मण के पुत्र का नाम सुमति था। वह भी पिता की की तरह वेदों में विद्वान था। पितृपक्ष में उसने अपने माता-पिता का श्राद्ध करने के उद्देश्य से पत्नी से खीर बनवायी और ब्राह्मणों को निमंत्रण दिया गया। उधर एक सांप ने आकर खीर को जहरीला कर दिया। कुतिया बनी ब्राह्मणी ने यह सब देख  लिया। उसने सोचा कि यदि इस खीर को ब्राह्मण खायेंगे तो जहर के प्रभाव से मर जायेंगे और सुमति को इसका पाप लगेगा। ऐसा सोच कर उसने सुमति की पत्नी के सामने ही जाकर खीर को छू दिया। इस पर सुमति की पत्नी को बहुत गुस्सा आया और उसने चूल्हे से जलती लकड़ी निकालकर उसकी पिटाई कर दी। उस दिन सुमति की पत्नी ने कुतिया को भोजन भी नहीं दिया। रात में कुतिया ने बैल को सारी घटना बताई। बैल ने कहा कि आज तो मुझे भी कुछ खाने को नहीं दिया गया। जबकि मुझसे दिनभर काम लिया जाता है।  उसने कहा की सुमति ने हम दोनों के ही उद्देश्य से श्राद्ध किया था और हमें ही भूखा रखा हुआ है। इस तरह हम दोनों के भूखे रह जाने से तो इसका श्राद्ध करना ही व्यर्थ हो जाएगा। सुमति  दरवाजे पर लेटा कुतिया और बैल की बातचीत सुन रहा था। वह पशुओं की बोली अच्छी तरह समझता था। उसे यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि उसके माता-पिता इन निकृष्ट योनियों में पड़े हैं। वह दौड़ता हुआ एक ऋषि के आश्रम में गया उसने उनसे अपने माता-पिता के पशुयोनि में पड़ने का कारण और मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषि ने ध्यान और योगबल से सारा हाल जान लिया। सुमति से कहा कि तुम पति-पत्नी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी का व्रत करना होगा और उस दिन बैल के जोतने से पैदा हुआ कोई भी अन्न नहीं खाना होगा। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे माता-पिता की मुक्ति प्राप्त हो जायेगी। यह सुनकर मातृ-पितृ भक्त सुमति द्वारा ऋषि पंचमी का व्रत किया गया जिसके प्रभाव से उसके माता-पिता को पशुयोनि से मुक्ति प्राप्त हो गई।


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