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श्राद्ध एक शास्त्रीय विवेचना

28 Sept 2023

श्राद्ध क्या है और क्यों करना चाहिए?

सनातन धर्म में मनुष्यो के लिए आवश्यक दैविक,आध्यात्मिक,वैज्ञानिक,प्राकृतिक,आर्थिक,सामाजिक विषयों को सुदृण्डता प्रदान करने के भाव से ओतप्रोत अनेक पर्व रूपी परम्पराओ से सुशोभित है। मुख्यतः देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृऋण,मनुष्य ऋण एवं भूत ऋण से मनुष्य मात्र आबद्ध है ऐसा सनातन का विश्वास है और इन ऋणों से निवृत्ति हेतु क्रमशः देवार्चन,अध्यन-अध्यापन,श्राद्ध,अतिथि सत्कार,पशु-पक्षी-वनस्पतियों के संरक्षण रूपी व्यवस्थाए हमारे प्राचीन ऋषियों-मुनियों द्वारा हमे प्रदान की गई है।


इन्ही परम्पराओ में से एक है "श्राद्ध"। हमारे वह पूर्वज जिनके कारण हमें यह पंचभौतिक देह प्राप्त हुई, नाम रूपी पहचान प्राप्त हुई,धन-संपत्ति, मान-सम्मान, स्नेह, सामर्थ्य सब कुछ ही तो प्राप्त हुआ,देखा जाय तो ईश्वर के बाद यदि हमारे जीवन का कोई वास्तविक आधार है तो वह हमारे पूर्वज ही है ऐसे पूर्वजो के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व "श्राद्ध"। अनेक प्रकार के श्राद्ध शास्त्रों में उल्लेखित है उन सभी मे सबसे अधिक प्रचलित जो विधि है उसका शास्त्रीय नाम है महालय अपर पक्ष श्राद्ध ओर सामान्य बोल चाल की भाषा मे श्राद्ध पक्ष। सनातनी पंचांग के अनुसार प्रत्येक हिन्दू वर्ष के भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से प्रारम्भ हो कर अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक जो सोलह दिवस होते है शास्त्रों में यही पितृपक्ष के नाम से विख्यात है,हालांकि शास्त्रीय विवेचनाओं में इसमें कुछ भेद है जैसे कुछ मनीषियों के अनुसार अश्विन कृष्ण की प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर आश्विन शुक्ल की प्रतिपदा तक जो सोलह दिवस है वह श्राद्ध पक्ष है परंतु पहले वाली व्यवस्था अधिक प्रचलित होने से व्यवहारिक भी वही है।


वर्तमान में अज्ञानता एवं अप्रमाणित तथ्यों से उपलब्ध जानकारियों के कारण श्राद्ध विषय को लेकर अनेक भ्रांतियां उत्पन्न हो गई है,सबसे अधिक कष्टप्रद तो यह विषय है कि श्राद्ध नाम सुनते ही हम भय ग्रस्त हो जाते है और बहुत डरते हुए आधे अधूरे तरीके से इस विधि को सम्पादित करते है|


श्रद्धया इदं श्राद्धम्


अर्थ - अपने पितृगणो की तृप्ति हेतु श्रद्धा पूर्वक किये जाने वाले कर्मविशेष को श्राद्ध शब्द से जाना जाता है


अर्थात श्राद्ध के लिए भय नही अपितु श्रद्धा चाहिए आप कोई भूत-प्रेत का पूजन नही कर रहे अपितु आप अपने पूर्वजो का पूजन कर रहे है,वह पूर्वज जो कभी दैहिक रूप से आपके माता-पिता,दादा-दादी इत्यादि रहे है,ओर इनके पूजन में भय नही श्रद्धा की आवश्यकता है स्नेह की आवश्यकता है।


पंडित सतीश नागर उज्जैन


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