
18 Sept 2022
भविष्य पुराण में बारह प्रकार के श्राद्धों का है वर्णन
तुलसी से पिण्डार्चन किए जाने पर पितर गण प्रलयपर्यन्त तृप्त रहते हैं। तुलसी की गंध से प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरुढ़ होकर विष्णुलोक चले जाते हैं।
पितर प्रसन्न तो सभी देवता प्रसन्न
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श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है...
यमराजजी का कहना है कि–
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श्राद्ध-कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है।
पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर वंश का विस्तार करते हैं।
परिवार में धन-धान्य का अंबार लगा देते हैं।
श्राद्ध-कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष की वृद्धि करता है और यश व पुष्टि प्रदान करता है।
पितरगण स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य आदि सभी सुख, स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं।
श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता वरन् वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।
भविष्यपुराण के अन्तर्गत बारह प्रकार के श्राद्धों का वर्णन हैं। यह बारह प्रकार के श्राद्ध हैं-
1. नित्य- प्रतिदिन किए जाने वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं।
2. नैमित्तिक- वार्षिक तिथि पर किए जाने वाले श्राद्ध को नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं।
3. काम्य- किसी कामना के लिए किए जाने वाले श्राद्ध को काम्य श्राद्ध कहते हैं।
4. नान्दी- किसी मांगलिक अवसर पर किए जाने वाले श्राद्ध को नान्दी श्राद्ध कहते हैं।
5. पार्वण - पितृपक्ष, अमावस्या एवं तिथि आदि पर किए जाने वाले श्राद्ध को पार्वण श्राद्ध कहते हैं।
6. सपिण्डन- त्रिवार्षिक श्राद्ध जिसमें प्रेतपिण्ड का पितृपिण्ड में सम्मिलन कराया जाता है, सपिण्डन श्राद्ध कहलाता है।
7. गोष्ठी- पारिवारिक या स्वजातीय समूह में जो श्राद्ध किया जाता है उसे गोष्ठी श्राद्ध कहते हैं।
8. शुद्धयर्थ- शुद्धि हेतु जो श्राद्ध किया जाता है उसे शुद्धयर्थ श्राद्ध कहते हैं। इसमें ब्राह्मण-भोज आवश्यक होता है।
9. कर्मांग- षोडष संस्कारों के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है उसे कर्मांग श्राद्ध कहते हैं।
10. दैविक - देवताओं के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है उसे दैविक श्राद्ध कहते हैं।
11. यात्रार्थ- तीर्थ स्थानों में जो श्राद्ध किया जाता है उसे यात्रार्थ श्राद्ध कहते हैं।
12. पुष्ट्यर्थ- स्वयं एवं पारिवारिक सुख-समृद्धि व उन्नति के लिए जो श्राद्ध किया जाता है उसे पुष्ट्यर्थ श्राद्ध कहते हैं।
क्या पितृपक्ष में दाढ़ी व बाल कटवाने से पूर्वजों को होता है कष्ट?
श्राद्ध का पक्ष जीवन में संघर्ष से उत्कर्ष की राह पर गतिशील होने की बेला है। इस कालखंड में स्वयं पर श्रद्धा व विश्वास, आर्थिक स्थिति सुधारने तथा समृद्धि प्राप्ति की उपासनाएं और सकारात्मक विचार व्यक्ति के कर्मों में बदलाव कर बड़ी सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। लक्ष्मी और ज्ञान की साधना के लिए यह एक उत्तम काल समय है। इस पक्ष का सही प्रयोग जीवन में आमूलचूल परिवर्तन का कारक बनता है। श्रद्धा से किया गया श्राद्ध आपके पूर्वजों तक पहुंचे, न पहुंचे, आपके जीवन में उन्नति और प्रगति का द्वार अवश्य खोल सकता है।
– पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध के दरमियान पूर्वजों को तेल अर्पित कर उसका दीपदान शनि व कालसर्प जनित कष्टों को नष्ट करने में सहायक होता है।
– श्राद्ध में दूध, तिल, तुलसी, सरसों और शहद का अर्पण और तर्पण संघर्ष में कमी करता है, ऐसा मान्यताएं कहती हैं
सवाल: पितृपक्ष अशुभ काल समय क्यों है? इसमें शुभ काम क्यों नहीं किया जा सकता? क्या इस पक्ष में पूजा पाठ हो सकता है?-
उत्तर : सद्गुरु कहते हैं कि पितृपक्ष बेहद पवित्र काल समय है। इसे अशुभ समझना अज्ञानता है। हां, इस दरमियान भौतिक गतिविधियों को महत्व नहीं दिया जाता है, क्योंकि आध्यात्मिक नजरिया स्थूल समृद्धि और भौतिक सफलता को क्षणभंगुर यानी शीघ्र मिट जाने वाला मानता है। भारतीय दर्शन इस कीमती कालखंड का इतना सस्ता उपयोग नहीं करना चाहता। इस समय में साधना, आराधना, उपासना व पूजन अवश्य किया जा सकता है। सनद (याद) रहे कि ऐश्वर्य की कामना रखकर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने वाली समृद्धि की साधना भी इस पक्ष के बिना पूर्ण नहीं होती। महालक्ष्मी आराधना के द्वितीय खंड में इस पक्ष के प्रथम सप्ताह का प्रयोग होता है। संदर्भ के लिए लक्ष्मी उपासना का काल भाद्रपद के शुक्ल की अष्टमी यानि राधा अष्टमी से आरम्भ होकर कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक होता है। परंपराओं के अनुसार इस काल में श्राद्ध, तर्पण, उपासना, प्रार्थना से पितृशांति के साथ जीवन के पूर्व कर्म जनित संघर्ष से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है, ऐसा मान्यताएं कहती हैं
सवाल : क्या यह सत्य है कि पितृपक्ष में दाढ़ी व बाल कटवाने से पूर्वजों की आत्माओं को कष्ट प्राप्त होता है?-
उत्तर: सद्गुरु कहते हैं कि श्राद्धपक्ष में केश कतर्न अथार्त बाल न कटवाना न करने का कोई उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में नहीं मिलता है। यह दंत कथाओं, सुनी-सुनाई बातों या किसी के अनुभव से प्रेरित होकर बाद में प्रचलित परंपराओं पर आधारित है। इनका कोई सुदृढ़ या शास्त्रीय आधार नहीं है।
सवाल: क्या पूर्वजों का श्राद्ध सिर्फ पितृपक्ष में ही हो सकता है? या इसके अलावा भी श्राद्ध संभव है?-
उत्तर: सद्गुरु कहते हैं कि हमारी परंपराओं और प्राचीन ग्रंथों में पितृपक्ष के अलावा भी श्राद्ध के काल का उल्लेख प्राप्त होता है। धर्मसिंधु में श्राद्ध के लिए सिर्फ पितृपक्ष ही नहीं, बल्कि 96 काल खंड का विवरण मिलता है, जो इस प्रकार है- वर्ष की
12 अमावास्याएं, 4 पुणादि तिथियां, 14 मन्वादि तिथियां, 12 संक्रांतियां, 12 वैधृति योग, 12 व्यतिपात योग, 15 पितृपक्ष, 5 अष्टका, 5 अन्वष्टका और 5 पूर्वेद्यु:।
सवाल : श्राद्ध कितने प्रकार से हो सकता है?-
उत्तर: मत्स्य पुराण में त्रिविधं श्राद्ध मुच्यते यानी तीन प्रकार के श्राद्ध नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य का और यमस्मृति में नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण इन पांच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता है। परन्तु भविष्य पुराण और विश्वामित्र स्मृति में द्वादश श्राद्धों यथा, नित्य, नैमित्तिक, काम्यम, वृद्धि, सपिण्ड, पार्वण, गोष्ठी, शुद्धयर्थ, कर्मांग, तीर्थ, यात्रार्थ और पुष्टि का उल्लेख करती है।
सवाल: जिनकी मृत्यु की तिथि पता न हो, उनका श्राद्ध कब किया जा सकता है?-
उत्तर: सद्गुरु कहते हैं कि जिनकी मृत्यु तारीख पता न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या को किया जाता है, ऐसा पारंपरिक अवधारणाएं कहती हैं