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क्यों मनाई जाती है तेजा दशमी?

25 Sept 2023

वीर तेजाजी महाराज की कथा

जाट समुदाय के आराध्य देव वीर तेजाजी की याद में तेजा दशमी पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों में तेजादशमी पर्व की धूम रहेगी। तेजा दशमी का पर्व भाद्रपद शुक्ल दशमी तिथि को मनाते हैं।


प्रसिद्ध हैं लोककथाएं


आमजन में लोकदेवता कुंवर तेजल के बारे में कई लोक कथाएँ व गाथाएं प्रचलित हैं। जाट समुदाय के आराध्य देव तेजाजी महाराज को साँपों के देव के रूप में पूजा जाता हैं। मान्यता है कि कितना भी जहरीला सांप काट जाए यदि तेजा के नाम की तांती बाँध दी जाए तो वह जहर उतर जाता हैं।


क्यों मनाई जाती है तेजा दशमी?


लोकदेवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खरनाल गांव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था। तेजाजी के माता-पिता को कोई सन्तान नहीं थी, उन्होंने शिव पार्वती की कठोर तपस्या की, जिसकें परिणामस्वरूप तेजाजी का उनकें घर दिव्य अवतरण हुआ। माना जाता है जब वे दुनिया में आए तो एक भविष्यवावाणी में कहा गया किया- भगवान् ने आपके घर अवतार लिया है। ये अधिक वर्ष तक इस रूप में नहीं रहेगे। बचपन में ही तेजाजी का विवाह पनेर के रायमल जी सोढा के यहाँ कर दिया गया था।


वीर तेजाजी महाराज की कथा


लोकदेवता वीर कुंवर तेजाजी जाट समुदाय के आराध्य देव हैं। मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा गुजरात और मध्यप्रदेश में मुख्य रूप से पूजे जाते हैं. किसान अपनी खुशहाली के लिए खेती में हल जोतते समय तेजाजी महाराज की पूजा करता हैं. तेजाजी अपने वचन के लिए सबसे लोकप्रिय देवता हैं. जिन्होंने सर्प देवता को अपने कहे वचन के अनुसार गायों को छुड़ाकर अपनी जान न्यूछावर की थी. इस कारण आज भी सर्पदंश होने पर तेजाजी महाराज की मनौती मांगी जाती हैं. उनकी घोड़ी का नाम लीलण एवं पत्नी का नाम पेमल था।ज्ञात जानकारी के मुताबिक वीर तेजाजी का जन्म 29 फरवरी 1074 (माघ शुक्ल 14, विक्रम संवत् 1130) को नागौर जिले के खरनाल ग्राम में हुआ था. इनके पिता का नाम थिरराज तथा माँ का नाम रामकुंवरी था. लोगों में प्रचलित मान्यता के अनुसार इनका विवाह पनेर ग्रामवासी रायमल जी की पुत्री पेमल से हुआ था. कम उम्र: में ही विवाह हो जाने के कारण उन्हें इस बात की जानकारी नही थी।


इस राज को तेजाजी से छुपाये जाने के पीछे वजह यह थी, कि किसी कारण से थिरराज और पेमल के मामा के बीच झगड़ा हो गया, खून की प्यासी तलवारें चलने से इसमें पेमल के मामा मारे गये थे। इसी वजह से उनको अपने विवाह प्रसंग के बारे में किसी ने नहीं बताया था।


धौलिया कुल में जन्में तेजाजी खरनाल के शासक थे, उनके पास 24 ग्राम का सम्राज्य था. एक बार खेत में हल जोतते समय उनकी भाभी द्वारा देरी से खाना पहुंचाने पर तेजाजी को गुस्सा आ गया, तथा उन्होंने देरी की वजह जाननी चाही, तो तेजाजी की भाभी उनके वैवाहिक प्रसंग के बारे में बताते हुए ताने भरे स्वर कहे-

इस पर तेजाजी अपनी घोड़ी लीलण पर सवार होकर ससुराल की ओर चलते. वहां पहुचने पर सांस द्वारा उन्हें अनजान में श्राप भरे कड़वे शब्द कहे जाते हैं, इस पर वो क्रोधित होकर वापिस चल देते हैं. पेमल को जब इस बात का पता चलता हैं. वो तेजाजी के पीछे जाती हैं, तथा उन्हें एक रात रुकने के लिए मना देती हैं। तेजाजी ससुराल में रुकने की बजाय लाछा नामक गूजरी के यहाँ रुकते हैं. संयोगवश उसी रात को लाछा की गायें मीणा चोर चुरा ले जाते हैं।


लाछा गूजरी जब तेजाजी को अपनी गायें छुड़ाने की विनती करती हैं, तो तेजाजी गौ रक्षार्थ खातिर रात को ही मीनों का पीछा का पीछा करने निकल जाते हैं. राह में उन्हें एक सांप जलता हुआ दिखाई दिया, जलते सांप को देखकर तेजाजी को उस पर दया आ गई. तथा भाले के सहारे उसे आग की लपटों से बाहर निकाल दिया. सांप अपने जोड़े से बिछुड़ जाने से अत्यधिक क्रोधित हुआ तथा उसने तेजा जी को डसने की बात कही|


तेजाजी ने नागदेवता की इच्छा को बड़ी विनम्रता से स्वीकार करते हुए, सांप से गाये छुडाने के बाद वापिस आने का वचन देते हैं। इस पर नाग उनकी बात मान लेते हैं. तेजाजी चोरों से भयंकर युद्ध करते हैं, इससे उनका सारा शरीर लहुलुहान हो गये मगर सारी गायों को छुड़ाकर वापिस ले आए, इसके बाद बाद अपने वचन की पालना के लिए नाग के पास पहुंचते है और उसे डसने को कहते हैं. नाग तेजाजी के घायल शरीर को देखकर पूछते हैं मै कहाँ डंक मारू आपका शरीर तो लहूलुहान हो चुका है।इस पर तेजाजी अपनी जीभ निकालकर जीभ पर डंक मारने को कहते हैं. इस प्रकार  किशनगढ़ के पास सुरसरा में भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160, तदनुसार 28 अगस्त 1103 के दिन तेजाजी की मृत्यु हो जाती हैं। सांप अपने वचन के पक् के कुंवर तेजाजी को साँपों के देवता के रूप में पूजे जाने का वरदान देते हैं। आज भी तेजाजी के देवरा व थान पर सर्प दंश वाले व्यक्ति के धागा बाँधा जाता है तथा पुजारी जहर को चूस कर निकाल लेते हैं।


कैसे हुई तेजा दशमी पर्व की शुरुआत?


दंतकथाओं और मान्यताओं को मानें और साथ ही इतिहास भी देखें तो वीर तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1130 माघ शुक्ल चतुर्दशी (गुरुवार 29 जनवरी 1074) के दिन खरनाल में हुआ था. *नागौर जिले के खरनाल के प्रमुख कुंवर ताहड़जी उनके पिता थे और राम कंवर उनकी मां।*दंतकथाओं में अब तक बताया जा रहा था कि तेजाजी का जन्म माघ सुदी चतुर्दशी को 1130 में हुआ था जबकि ऐसा नहीं है। तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1243 के माघ सुदी चौदस को हुआ था। वहीं दंतकथाओं में तेजाजी की वीर गति का साल 1160 बताया गया है जबकि सच यह है कि तेजाजी को 1292 में वीर गति अजमेर के पनेर के पास सुरसुरा में प्राप्त हुई थी। हालांकि तिथि भादवा की दशमी ही है।


कहते हैं कि भगवान शिव की उपासना और नाग देवता की कृपा से ही वीर तेजाजी जन्मे थे। जाट घराने में जन्मे तेजाजी को जाति व्यवस्था का विरोधी भी माना जाता है।हुआ यूं कि वीर तेजाजी का विवाह उनके बचपन में ही पनेर गांव की रायमलजी की बेटी पेमल से हो गया। पेमल के मामा इस रिश्ते के खिलाफ थे और उन्होंने ईर्ष्या में तेजा के पिता ताहड़जी पर हमला कर दिया। ताहड़जी को बचाव के लिए तलवार चलानी पड़ी, जिससे पेमल का मामा मारा गया।


यह बात पेमल की मां को बुरी लगी और इस रिश्ते की बात तेजाजी से छिपा ली गई। बहुत बाद में तेजाजी को अपनी पत्नी के बारे में पता चला तो वह अपनी पत्नी को लेने ससुराल गए। वहां ससुराल में उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी लौटने लगे तब पेमल की सहेली लाछा गूजरी के यहां वह अपनी पत्नी से मिले, लेकिन उसी रात मीणा लुटेरे लाछा की गाएं चुरा ले गए।


वीर तेजाजी गाएं छुड़ाने के लिए निकल पड़े। रास्ते में आग में जलता सांप मिला जिसे तेजाजी ने बचाया, लेकिन सांप अपना जोड़ा बिछड़ने से दुखी था इसलिए उसने डंसने के लिए फुंफकारा। वीर तेजाजी ने वचन दिया कि पहले मैं लाछा की गाएं छुड़ा लाऊं फिर डंसना। मीणा लुटेरों से युद्ध में तेजाजी गंभीर घायल हो गए।


लेकिन इसके बाद भी वह सांप के बिल के पास पहुंचे। पूरा शरीर घायल होने के कारण तेजाजी ने अपनी जीभ पर डंसवाया और भाद्रपद शुक्ल (10) दशमी संवत् 1160 (28 अगस्त 1103) को उनका निर्वाण हो गया। यह देख पेमल सती हो गई। इसी के बाद से राजस्थान के लोकरंग में तेजाजी की मान्यता हो गई। गायों की रक्षा के कारण उन्हें ग्राम देवता के रूप में पूजा जाता है। नाग ने भी उन्हें वरदान दिया था। उस दिन से तेजादशमी पर्व मनाने की परंपरा जारी है।दंत कथाओं में तेजाजी के चार से पांच भाई बताए गए थे जबकि वंशावली के अनुसार तेजाजी तेहड़जी के एक ही पुत्र थे तथा तीन पुत्रियां कल्याणी, बुंगरी व राजल थी। तेजाजी के पिता तेहड़जी के कहड़जी, कल्याणजी, देवसी, दोसोजी चार भाई थे। जिनमें देवसी की संतानों से आगे धोलिया गौत्र चला। धोलिया वंश की उत्पति खरनाल से ही हुई थी। इसके बाद वि.सं. 1650 में कुछ लोग गांव छोड़कर दूसरी जगहों पर जाकर बस गए जिससे राज्य भर में धोलिया जाति फैल गई।


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