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त्रिपिंडी श्राध्द-और क्यों किया जाता है त्रिपिंडी श्राध्द

16 Sept 2022

आइये जानते हैं क्या हैं

त्रिपिंडी काम्‍य श्राध्द है। लगातार तीन वर्ष तक जिनका श्राध्द न किया गया हो, उनको प्रेतत्‍व प्राप्त होता है। अमावस्या पितरों की तिथि है। इस दिन त्रिपिंडी श्राध्द करें। तमोगुणी, रजोगुणी एवं सत्तोगुणी – ये तीन पितृ योनियां हैं। पृथ्वीपर वास करने वाले पितृ तमोगुमी होते है। अंतरिक्ष में वास करने वाले पितृ रजोगुणी एवं वायुमंडल पर वास करने वाले पितृ सत्तोगुणी होते है। इन तीनों प्रकार की प्रेतयोनियो की पिशाच पीडा के निवारण हेतु त्रिपिंडी श्राध्द किया जाता है।

कई साल तक पितरों का विधी पूर्वक श्राध्द न होने से पितरों को प्रेतत्व प्राप्त होता है। श्राध्द कमलाकर ग्रंथ में साल मे ७२ बार पितरों का श्राध्द करना चाहिए यह कहा गया है।

अमावस्या व्दादशैव क्षयाहव्दितये तथा।षोडशापरपक्षस्य अष्टकान्वष्टाकाश्च षट॥

संक्रान्त्यो व्दादश तथा अयने व्दे च कीर्तिते।चतुर्दश च मन्वादेर्युगादेश्च चतुष्टयम॥

श्राध्द न करने से पितर लोग अपने वंशजों का खून पिते है यह आदित्यपुराण मे कहा है।

न सन्ति पितरश्र्चेति कृत्वा मनसि यो नरः।

श्राध्दं न कुरुते तत्र तस्य रक्तं पिबन्ति ते॥

(आदित्यपुराण)

श्राध्द न करने से होनेवाले दोष त्रिपिंडी श्राध्द से समाप्त होते है।जैसे भूतबाधा, प्रेतबाधा, गंधर्व राक्षस शाकिनी आदि दोष दूर करने के लिए त्रिपिंडी श्राध्द करने की प्रथा है| घर में कलह, अशांती, बिमारी, अपयश, अकाली मृत्य, वासना पूर्ति न होना, शादी विवाह समय पर न होना, संतान न होना इस सब को प्रेत दोष कहा जाता है।धर्म ग्रंथ में धर्म शास्त्र के अनुसार सभी दोष के निवारण के लिए त्रिपिंडी श्राध्द करना को सुचित किया गया है।

त्रिपिंडी श्राध्द में ब्रम्हदेव,विष्णु,रुद्र ये तीन देवताओं की प्राणप्रतिष्ठापूर्वक पुजा की जाती है।त्रिपिंडी श्राध्द में सात्विक प्रेत दोष निवारण के लिए ब्रम्ह पुजन करते है और यव का पिंड दिया जाता है। राजस प्रेत दोष निवारण के लिए विष्णु पुजन करते है और चावल का पिंड दिया जाता है। तामस प्रेत दोष निवारण के लिए तिल्लिका पिंड दिया जाता है और रुद्र पुजन करते है।

यह पुजा सभी अतृप्त आत्माओं के मोक्ष प्राप्ती के लिए कि जाती है।त्रिपिंडी श्राध्द में अपने गोत्र, पितरोंके नाम का नही किया जाता।कारण कौन सी पितरों की बाधा है।इस के बारे मे शाश्वत ज्ञान नहि होता।सभी अतृप्त आत्माओं की मोक्ष प्राप्ती के लिए त्रिपिंडी श्राध्द करने का शास्त्र धर्मग्रंथ में बताया गया है।

त्रिपिंडी श्राध्द का आरम्भ करने से पूर्व किसी पवित्र नदी या तीर्थ स्थान में शरीर शुध्दि के लिये प्रायश्चित के तौर पर क्षौर कर्म कराने का विधान है। त्रिपिंडी श्राध्द में ब्रह्मा, विष्णु् और महेश इनकी प्रतिमाएं तैयार करवाकर उनकी प्राण-प्रतिष्ठापुर्वक पूजन किया जाता है। ब्राह्मण से इन तीनों देवताओं के लिये मंत्रों का जाप करवाया जाता है। हमें सतानेवाला, परेशान करने वाला पिशाचयोनि प्राप्त जो जीवात्मा है, उसका नाम एवं गोत्र हमे ज्ञात नहीं होने से उसके लिये अनाधिष्ट गोत्र शब्द‍ का प्रयोग किया जाता है। अंतत: इससे प्रेतयोनि प्राप्त उस जीवात्मा को सम्बोधित करते हुए यह श्राध्द किया जाता है। जौ तिल, चावल के आटे के तीन पिंड तैयार किये जाते हैं। जौ का पिंड समंत्रक एवं सात्विक होता हे, वासना के साथ प्रेतयोनि में गये जीवात्मा को यह पिंड दिया जाता है। चावल के आटे से बना पिंड रजोगुणी प्रेतयोनी में गए प्रेतात्माओ को दिया जाता है। इन तीनों पिंडो का पूजन करके अर्ध्यं देकर देवाताओं को अर्पण किये जाते है। हमारे कुलवंश को पिडा देने वाली प्रेतयोनि को प्राप्त जीवात्माओं को इस श्राध्द कर्म से तृप्ती हो और उनको सदगति प्राप्त हो, ऐसी प्रार्थना के साथ यह कर्म किया जाता है। सोना, चांदी, तांबा, गाय, काले तिल, उडद, छत्र-खडाऊ, कमंडल में चीजें प्रत्यक्ष रुप में या उनकी कीमत के रुप में नकद रकम दान देकर अर्ध्य दान करने के पश्चात ब्राह्मण एवं सौभाग्यीशाली स्त्री को भोजन करवाने के पश्चात यह श्राध्दं कर्म पूर्ण होता है।

पितृपक्ष के दौरान जरूर करें ये काम, होगा धन लाभ और पितरों से मिलेगा अखंड वरदान

पितृ पक्ष के दौरान पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान जैसे कार्य किए जाते हैं. वहीं, कुछ ऐसे विशेष कार्य होते हैं जिन्हें श्राद्ध के दौरान करना अत्यंत शुभ माना गया है.

सनातन धर्म में पितृ पक्ष विशेष महत्व रखता है.

हिंदू पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से प्रारंभ होते हैं और आश्विन मास की अमावस्या तिथि पर संपन्न होते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक, इस वर्ष श्राद्ध पक्ष यानी पितृ पक्ष 10 सितंबर, दिन शनिवार से प्रारंभ हो रहे हैं. वहीं, इसका समापन 25 सितंबर, दिन रविवार को होगा. पितृ पक्ष के दौरान पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान जैसे कार्य किए जाते हैं. ऐसा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है तथा कुंडली में मौजूद पितृ दोष से भी मुक्ति मिल जाती है. वहीं, कुछ ऐसे विशेष कार्य होते हैं जिन्हें श्राद्ध के दौरान करना अत्यंत शुभ माना गया है.

तो आइए जानते हैं पितृपक्ष के दौरान क्या क्या करना चाहिए.

इन चीजों के साथ करें पितरों का तर्पण

नियमों के अनुसार, श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन अपने दिवंगत पूर्वजों के तर्पण हेतु जल, जौं और काले तिल के साथ पुष्पों का प्रयोग करना चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.

श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराए

श्राद्ध पक्ष में पितरों की मृत्यु तिथि के दिन श्राद्ध करने का विधान होता है. इस दिन पूर्वजों के निमित्त विशेष भोजन बनाया जाता है. श्राद्ध तिथि के दिन बाह्रणों को भी भोजन कराना चाहिए. ऐसा करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है.

पितरों के नाम से कराएं भागवत कथा

श्राद्ध पक्ष में पितरों के नाम से श्रीमद् भागवत कथा करवाने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है. कहते हैं इससे उनकी आत्मा तृप्त होती है. उनके नाम से गरूड़ पुराण का पाठ, नारायण बली, त्रिपिंडी श्राद्ध करना उत्तम माना गया है. ऐसा करने से कुंडली में पितृ दोष से मुक्ति मिलती है.

पीपल के पेड़ की करें पूजा

श्राद्ध के दौरान प्रतिदिन पीपल या बरगद के पेड़ पर जल चढ़ाना चाहिए. दोनों वृक्ष देवतुल्य हैं. इन पर जल और काले तिल चढ़ाने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है और जातकों के जीवन में धन-समृद्धि आती है.

श्राद्ध में इन्हें जरूर कराएं भोजन

श्राद्ध पक्ष में गाय, कुत्ते, कौवे और चींटियों को भोजन कराना चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं और वे अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं.

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