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कब है गोपाष्टमी? इस दिन ये 5 काम करने से मिलता है श्रीकृष्ण का आशीर्वाद

31 Oct 2022

इस साल गोपाष्टमी का त्योहार 01 नवंबर को मनाया जाएगा। ऐसा कहते हैं कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और गाय की पूजा करने से सुख-संपन्नता बढ़ती है।

इस दिन 5 चमत्कारी उपाय करने से भी आपका जीवन संवर सकता है।


गोपाष्टमी पर मिलता है श्री कृष्ण का आशीर्वाद


01 नवंबर को गोपाष्टमी का त्योहार

श्रीकृष्ण के साथ गाय की पूजा करने से होगा लाभ

गोपाष्टमी पर जरूर करें ये 5 उपाय


हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का त्योहार मनाए जाने की परंपरा है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने गोपाष्टमी पर ही गौ-चारण यानी गायों को चराना शुरू किया था। चूंकि श्रीकृष्ण स्वंय गायों की सेवा करते थे, इसलिए इस दिन गौ सेवा का विशेष महत्व बताया गया है। इस साल गोपाष्टमी का त्योहार 01 नवंबर 2022 दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। गोपाष्टमी के दिन कुछ विशेष उपाय करने से भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद आपको मिल सकता है।


आइए आपको इन चमत्कारी उपायों के बारे में बताते हैं।


जानिए गोपाष्टमी के चमत्कारी उपाय

गाय को चारा खिलाएं-

गोपाष्टमी के दिन गाय या गाय के बछड़े को हरा चारा खिलाना बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि इस दिन गाय को हरा चारा खिलाने से दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है।


गाय की परिक्रमा-

गोपाष्टमी के त्योहार पर भगवान श्रीकृष्ण को याद करते हुए गाय की परिक्रमा करने से भी इंसान का भाग्योदय होता है। भगवान कृष्ण के मंत्रों का उच्चारण करते हुए भी आप गाय की परिक्रमा कर सकते हैं।


गाय के चरणों की धूल-

गोपाष्टमी के शुभ पर्व पर गाय के चरणों की धूल से माथे पर तिलक लगाने से इंसान की किस्मत चमकती है। इस दिन सूर्यास्त के समय गाय की पूजा के बाद उन्हें दण्डवत् प्रणाम करना चाहिए।


ग्वालों का तिलक-

गोपाष्टमी के दिन व्रत-उपवास करने वालों को ग्वालों का तिलक करके उन्हें दान-दक्षिणा देनी चाहिए। आप उन्हें कोई भी सफेद या हरे रंग की चीज दान कर सकते हैं। संतान की उन्नति के लिए ये उपाय बहुत ही उत्तम होता है।

गाय की प्रतिमा-

गोपाष्टमी के दिन घर में गाय की छोटी सी मूर्ति या प्रतिमा लाना भी बहुत शुभ होता है। ऐसा कहते हैं कि जिस घर में गाय कि प्रतिमा होती हैं, वहां अन्न-धन की कभी कमी नहीं आती है।


. "गोपाष्टमी"


गोपाष्टमी, ब्रज में भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण जी का अतिप्रिय नाम 'गोविन्द' पड़ा। कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। इसी समय से अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है।

हिन्दू संस्कृति में गाय का विशेष स्थान हैं। माँ का दर्जा दिया जाता हैं क्योंकि जैसे एक माँ का ह्रदय कोमल होता हैं, वैसा ही गाय माता का होता हैं। जैसे एक माँ अपने बच्चो को हर स्थिति में सुख देती हैं, वैसे ही गाय भी मनुष्य जाति को लाभ प्रदान करती हैं।

गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशाला में गो-संवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है। गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं। गोपाष्टमी की पूजा विधि पूर्वक विद्वान पंडितो द्वारा संपन्न की जाती है। बाद में सभी प्रसाद वितरण किया जाता है। सभी लोग गौ माता का पूजन कर उसके वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्व को समझ गौ-रक्षा व गौ-संवर्धन का संकल्प करते हैं।

शास्त्रों में गोपाष्टमी पर्व पर गायों की विशेष पूजा करने का विधान निर्मित किया गया है। इसलिए कार्तिक माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को प्रात:काल गौओं को स्नान कराकर, उन्हें सुसज्जित करके गन्ध पुष्पादि से उनका पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात यदि संभव हो तो गायों के साथ कुछ दूर तक चलना चाहिए कहते हैं ऐसा करने से प्रगति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। गायों को भोजन कराना चाहिए तथा उनकी चरण को मस्तक पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है।

एक पौराणिक कथा अनुसार बालक कृष्ण ने माँ यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की कृष्ण कहते हैं कि माँ मुझे गाय चराने की अनुमति मिलनी चाहिए। उनके कहने पर शांडिल्य ऋषि द्वारा अच्छा समय देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने दिया जो समय निकाला गया, वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था। बालक कृष्ण ने गायों की पूजा करते हैं, प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम करते हैं।

इस दिन गाय की पूजा की जाती हैं। सुबह जल्दी उठकर स्नान करके गाय के चरण-स्पर्श किये जाते हैं। सुबह गाय और उसके बछड़े को नहलाकर तैयार किया जाता है। उसका श्रृंगार किया जाता हैं, पैरों में घुंघरू बांधे जाते हैं, अन्य आभूषण पहनायें जाते हैं। गो-माता की परिक्रमा भी की जाती हैं। सुबह गायों की परिक्रमा कर उन्हें चराने बाहर ले जाते हैं। गौ माता के अंगो में मेहँदी, रोली, हल्दी आदि के थापे लगाये जाते हैं। गायों को सजाया जाता है, प्रातःकाल ही धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड, जलेबी, वस्त्र और जल से गौ-माता की पूजा की जाती है, और आरती उतारी जाती है। पूजन के बाद गौ ग्रास निकाला जाता है, गौ-माता की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा के बाद गौओं के साथ कुछ दूर तक चला जाता है। कहते हैं ऎसा करने से प्रगति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। इस दिन ग्वालों को भी दान दिया जाता है। कई लोग इन्हें नये कपड़े दे कर तिलक लगाते हैं। शाम को जब गाय घर लौटती है, तब फिर उनकी पूजा की जाती है, उन्हें अच्छा भोजन दिया जाता है


विशेष


1. इस दिन गाय को हरा चारा खिलाएँ।

2. जिनके घरों में गाय नहीं है वे लोग गौशाला जाकर गाय की पूजा करें।

3. गंगा जल, फूल चढाये, दिया जलाकर गुड़ खिलाये।

4. गाय को तिलक लगायें, भजन करें, गोपाल (कृष्ण) की पूजा भी करें, सामान्यतः लोग अपनी सामर्थ्यानुसार गौशाला में खाना और अन्य समान का दान भी करते हैं।

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