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कुंडली मिलान में नाड़ी मिलान क्यों करते हैं

8 May 2024

अष्टकूट मिलान में 36 अंकों का वितरण

  विवाह पूर्व कुंडली मिलान या गुण मिलान किया जाता है। इसे अष्टकूट मिलान या मेलापक मिलान कहते हैं। इसमें अष्टकूट सूत्र में दोनों के आपसी गुणधर्मों को 8 गुणों में बांटा जा है। 8 गुणों को क्रमश: 1 से 8 अंक दिए गए हैं, जो कुल मिलाकर 36 होते हैं। प्रत्येक गुण के अलग-अलग अंक निर्धारित हैं। इन 36 अंकों में से से कम से कम 19 अंक मिल जाने से मिलान को ठीक माना जाता है, लेकिन इसके लिए उसका नाड़ी मिलान होना जरूरी होता है।

अष्टकूट मिलान में 1.वर्ण, 2.वश्य, 3.तारा, 4.योनि, 5.राशीश (ग्रह मैत्री), 6.गण, 7.भटूक और 8.नाड़ी का मिलान किया जाता है। अष्टकूट मिलान ही काफी नहीं है। कुंडली में मंगल दोष भी देखा जाता है, फिर सप्तम भाव, सप्तमेश, सप्तम भाव में बैठे ग्रह, सप्तम और सप्तमेश को देख रहे ग्रह और सप्तमेश की युति आदि भी देखी जाती है।

अष्टकूट मिलान में 36 अंकों का वितरणवर्ण : 1वश्य : 2तारा : 3योनि : 4मैत्री : 5गण : 6भकूट : 7नाड़ी : 8नाड़ी तीन होती है : आद्या नाड़ी, मध्य नाड़ी और अंत्य नाड़ी। अश्वनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, पू. फाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पू. भाद्र की आद्य नाड़ी। भरणी, मृगशिरा, पुष्य, उ. फाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पू.षा. घनिष्ठा, उ. भाद्र की मध्य नाड़ी। कृतिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उ.षा., श्रवण, रेवती की अंत्य नाड़ी होती है।वर और कन्या की यदि एक ही नाड़ी है तो नाड़ी दोष उत्पन्न होगा। नाड़ी का भिन्न होना जरूरी है। वर-कन्या के जन्म नक्षत्र एक ही नाड़ी के नहीं होने चाहिए। दोनों की नाड़ियां भिन्न होना शुभ माना जाता है।नाड़ी मिलान क्यों करते हैं : नाड़ी का संबंध संतान से है। दोनों के शारीरिक संबंधों से उत्पत्ति कैसी होगी, यह नाड़ी पर निर्भर करता है। शरीर में रक्त प्रवाह और ऊर्जा का विशेष महत्व है। दोनों की ऊर्जा का मिलान नाड़ी से ही होता है। सुखी और पूर्ण वैवाहिक जीवन के लिए पति और पत्नी की नाड़ी अलग होनी चाहिए।नाड़ी दोष क्या होता है : जो लोग नाड़ी मिलाए बगैर विवाह कर लेते हैं जो नाड़ी दोष उत्पन्न होता है। इससे अनेक तरह की आकस्मिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। दांपत्य जीवन में उतार चढ़ाव आते हैं। इसके कारण तलाक तक की नौबत आ जाती है। नाड़ी दोष से वर या वधु में से किसी एक की मृत्यु भी होने की संभावना रहती है। यदि कुंडली में नाड़ी दोष हो तो आने वाली पीढ़ी कमजोर होगी और इस बात की ज्यादा संभावना रहेगी कि कोई संतान पैदा ही नहीं हो।

दांपत्य जीवन व नाड़ी दोष

कुंडली मिलान करते समय वर- वधु के 36 गुणों का मिलान किया जाता है। जिसमें नाड़ी दोष बेहद महत्व रखता है।

 समान नाड़ी होने पर पारस्परिक विकर्षण तथा असमान नाड़ी होने पर आकर्षण पैदा होता है। जिस व्यक्ति में जो गुण अधिक होता है वही उसकी प्रधान नाड़ी होती है। अतः प्रमुख नाड़ी से संबंधित तत्वों की वृद्धि से समान नाड़ी में वृद्धि होगी, जो शरीर के लिए हानिकारक होता है। ऐसे में यदि विवाह कर दिया जाए तो दंपत्ति को जीवन में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि दोनों के बीच अलगाव तक की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।

 विवाह में वर-वधू के गुण मिलान में नाड़ी का महत्व सर्वाधिक माना जाता है। 36 गुणों में से नाड़ी के लिए सबसे अधिक 8 गुण निर्धारित हैं। यदि जन्म कुंडली में नाड़ी दोष नहीं है तो लगभग अष्टकूट गुण मिलापक स्थिति अनुकूल हो जाती है।

 नाड़ियां तीन होती हैं-: आद्य, मध्य और अन्त्य| इन नाड़ियों का संबंध मानव की शारीरिक धातुओं से है। वर-वधु की समान नाड़ी होना दोषपूर्ण माना जाता है तथा संतान पक्ष के लिए भी यह दोष हानिकारक हो सकता है। यानि अगर वर-वधु की नाड़ी एक जैसी हुई, तो उसका असर भी संतान के विकास पर भी पड़ सकता है।

 नाड़ी दोष का दुष्प्रभाव वर एवं वधु की प्रजनन शक्ति, स्वास्थ्य तथा आयु पर सीधा-सीधा पड़ता है। अतः ध्यान रहे सुखमय दांपत्य जीवन के लिए कुंडली में नाड़ी दोष का विश्लेषण अवश्य कर लेना चाहिए।

 बहुत बार ऐसा भी देखा गया है कि कंप्यूटर से कुंडली मिलाने पर अष्टकूट गुण मिलान में नाड़ी दोष दिखता है, लेकिन असल में जब शास्त्रों के अनुसार उसका विश्लेषण करते हैं तो नाड़ी दोष का परिहार भी हो जाता है। यदि जन्म कुंडली में नाड़ी दोष का परिहार हो जाए और वर- वधू की कुंडली में गुरु- शुक्र व सप्तम भाव व सप्तमेश ग्रह शुभ अवस्था में है होता है तो भी शादी विवाह किया जा सकता है।

 

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