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सूर्य षष्ठी का महत्व, मुहूर्त और मंत्र

21 Sept 2023

सूर्य उपासना एवं पूजन का पर्व - सूर्य षष्ठी व्रत

धार्मिक मान्यतानुसार प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन सूर्य षष्ठी व्रत मनाया जाता है। इसमें भगवान सूर्य का पूजन किया जाता है। वर्ष 2023 में यह पर्व 21 सितंबर, दिन गुरुवार को मनाया जा रहा है।


महत्व


पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि के दिन सूर्य उपासना का विधान दिया गया है। भाद्रपद महीने में सूर्य का नाम विवस्वान है। इस दिन उपवास करने का महत्व है। षष्ठी के दिन सूर्य प्रतिमा की पूजा किया जाना चाहिए।


षष्ठी के दिन भगवान सूर्यदेव का विधिवत पूजन करना चाहिए तथा एक समय का बिना नमक का भोजन ग्रहण करना चाहिए तथा यह व्रत एक वर्ष तक करना चाहिए। यह व्रत सुख-सौभाग्य और संतान की रक्षा करने वाला माना गया है।


शुभ मुहूर्त


पूजन का शुभ समय- सुबह 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तकराहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक


सूर्य षष्‍ठी मंत्र


  • ॐ ह्रीं घृणि सूर्य आदित्य, श्रीं ह्रीं मह्यं लक्ष्मीं प्रयच्छ।

  • ॐ सूर्याय नम:।

  • ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ।

  • ॐ घृणि सूर्याय नम:।

  • ॐ घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य।

  • ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः।

  • ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।

  • ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।


सूर्य षष्ठी पर्व


सूर्य षष्ठी पर्व/व्रत भाद्रपद माह की षष्ठी तिथि के दिन मनाया जाता है। इसमें भगवान सूर्य का पूजन किया जाता है।


पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि के दिन सूर्य उपासना का विधान दिया गया है। इस दिन उपवास करने का महत्व है। पुराणों के अनुसार इस दिन गंगा स्नान का भी महत्व है। षष्ठी के दिन सूर्य प्रतिमा की पूजा किया जाना चाहिए।


भाद्रपद महीने में सूर्य का नाम 'विवस्वान' है। षष्ठी के दिन भगवान सूर्यदेव का विधिवत पूजन करना चाहिए तथा एक समय का बिना नमक का भोजन ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत को करने से भगवान सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं और सूर्य आराधना करने वालों को सूर्य जैसा तेज प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से नेत्र रोगियों को भी फायदा होता है। यह व्रत 1 वर्ष तक करना चाहिए।


सूर्य षष्‍ठी के ॐ ह्रीं घृणि सूर्य आदित्य: श्रीं ह्रीं मह्यं लक्ष्मीं प्रयच्छ इस मंत्र का जाप करना चाहिए। जाप पूर्ण होने के पश्चात सूर्यदेव को तांबे के कलश से अर्घ्य चढ़ाना चाहिए। अर्घ्य चढ़ाने के जल में रोली, शकर और अक्षत डालने से भगवान सूर्यदेव प्रसन्न होकर सुख-सौभाग्य, आयु, धन-धान्य, यश-विद्या आदि देते हैं।


पंडित सतीश नागर उज्जैन


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