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जानिए पर्युषण पर्व के बारे में

15 Sept 2023

क्या है पर्युषण और इसका महत्व?

श्वेतांबर और दिगंबर समाज के पर्युषण पर्व भाद्रपद मास में मनाए जाते हैं। श्वेतांबर के व्रत समाप्त होने के बाद दिगंबर समाज के व्रत प्रारंभ होते हैं। 10 दिवसीय पयुर्षण पर्व की शुरुआत होती है। 10 दिन तक उपवास के साथ ही मंदिर में पूजा आराधना होगी।


पर्युषण क्या है?


  • पर्युषण का अर्थ है परि यानी चारों ओर से, उषण यानी धर्म की आराधना। पर्युषण को महावर्प कहा जाता है।

  • श्वेतांबर समाज 8 दिन तक पर्युषण पर्व मनाते हैं जिसे 'अष्टान्हिका' कहते हैं जबकि दिगंबर 10 दिन तक मनाते हैं जिसे वे 'दसलक्षण' कहते हैं। ये दसलक्षण हैं- क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, संयम, शौच, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य।

  • श्वेतांबर भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की पंचमी और दिगंबर भाद्रपद शुक्ल की पंचमी से चतुर्दशी तक यह पर्व मनाते हैं।


क्यों किए जाते हैं?


यह व्रतों का महापर्व है। श्वेतांबर समाज 8 दिन तो दिगंबर समाज 10 दिन तक व्रत रखते हैं। व्रत रखकर सभी तरह के ताप मिटाए जाते हैं।


क्या है महत्व?


  • यह पर्व महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो के मार्ग पर चलना सिखाता है तथा मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है। इस पर्वानुसार- 'संपिक्खए अप्पगमप्पएणं' अर्थात आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो।


  • पर्युषण पर्व के समापन पर 'विश्व-मैत्री दिवस' अर्थात संवत्सरी पर्व मनाया जाता है। अंतिम दिन दिगंबर 'उत्तम क्षमा' तो श्वेतांबर 'मिच्छामि दुक्कड़म्' कहते हुए लोगों से क्षमा मांगते हैं। इससे मन के सभी विकारों का नाश होकर मन निर्मल हो जाता है और सभी के प्रति मैत्रीभाव का जन्म होता है।


  •  पर्युषण पर्व जैनों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व बुरे कर्मों का नाश करके हमें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। भगवान महावीर के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर हमें निरंतर और खासकर पर्युषण के दिनों में आत्मसाधना में लीन होकर धर्म के बताए गए रास्ते पर चलना चाहिए।

पंडित सतीश नागर उज्जैन


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