
7 Sept 2023
भगवान श्री कृष्ण समष्टि दृष्टि (विराट स्वरूप) के प्रदाता हैं
श्री विष्णु शक्ति का पूर्ण प्रादुर्भाव युक्त अवतरण श्री कृष्ण के रूप में हुआ। उन्होंने व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ गूढ़ ज्ञान से भी संसार को परिचित कराया तथा कर्म योग, ज्ञान योग व भक्ति योग का सिद्धांत प्रतिपादित किया। हमारे नाड़ी तंत्र चक्रों पर विभिन्न देवी-देवताओं की शक्तियों का प्रकटीकरण होता है, इसी क्रम में श्री कृष्ण का स्थान विशुद्धि चक्र है। विशुद्धि चक्र पर स्थापित श्री कृष्ण हमारे अंतः स्थित सोलह उप केंद्रों का नियंत्रण करते हैं। वे हर चीज का नियंत्रण करते हैं गला, नाक, आंखें व कान उन्हीं के नियंत्रण में होते हैं। श्री माताजी निर्मला देवी जी विशुद्धि चक्र की व्याख्या करते हुए वर्णित करती हैं कि,"पाँचवाँ चक्र विशुद्धि चक्र के नाम से जाना जाता है।
मनुष्य की गर्दन में इसकी रचना है , इसमें सोलह पंखुड़ियाँ होती है जो कान , नाक , गला जिव्हा तथा दाँतो आदि की देखभाल करती है । दूसरों से सम्पर्क स्थापित करने का दायित्व भी इसी चक्र का है क्योंकि अपनी आँखें , नाक , कान , वाणी तथा हाथों के द्वारा हम दूसरों से सम्पर्क करते हैं । शारीरिक स्तर पर यह चक्र ग्रीवा केन्द्र के लिये कार्य करता है।
मनुष्य में पाप पुण्य का विचार विशुद्धि चक्र से आता है । दायीं ओर श्रीकृष्ण और श्री राधा की शक्ति से बना है ( श्री रुक्मिणी विठ्ठल ) इस शक्ति के विरोध में जब मनुष्य जाता है तब कहता है मैं बहुत बड़ा आदमी हूँ ...... मैं ही सब कुछ हूँ ..... ऐसी वृत्ति में उस मनुष्य में कंस रूपी अहंकार बढ़ता है .... उसे लगता है कि किसी भी प्रकार मुझे सभी लोगों पर अपना अधिकार जमाना चाहिये ..... उसे दायीं तरफ की विशुद्धि चक्र की पकड़ होती है ।
अब जिनकी आदत बहुत ज्यादा चिल्लाने की, चीखने की , दूसरों को अपने शब्दों में रखने की ... और अपने शब्दों से दूसरों को दुःख देने की आदत होती है , उसकी राइट विशुद्धि पकड़ी जाती है और उससे अनेक रोग उसे हो जाते हैं । ....... राइट साइड पकड़ने से स्पान्डिलायटिस होता है ... दुनिया भर की दूसरी बीमारी हो सकती है जैसे लकवा और दिल का दौरा , हाथ उसका जकड़ जाता है । ..... इससे जुकाम- सर्दी होती है , इतना ही नहीं जिसे हम कहते हैं अस्थमा , उसका प्रादुर्भाव हो सकता है ।
विशुद्धि चक्र के अन्तर्जात गुण
1. सामूहिक चेतना
2. माधुर्य मिठास
3. व्यवहार कुशलता
4. साक्षी अवस्था
एक बार सहस्रार खुल जाने के बाद आपको वापिस अपनी विशुद्धि चक्र पर आना पड़ता है , अर्थात् अपनी सामूहिकता के स्तर पर विशुद्धि चक्र यदि ज्योतिर्मय नहीं हो तो आप चैतन्य लहरी महसूस नहीं कर सकते । साक्षी स्वरूपत्व अवस्था आपको तब प्राप्त होती है जब कुण्डलिनी ऊपर आती है और योग स्थापित होता है और दिव्य लहरियाँ ऊपर आती है और आपके विशुद्धि चक्र को समृद्ध बनाती हैं।
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