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आत्मसाक्षात्कार के द्वारा ईश्वर के प्रेम की अलख को अपने भीतर महसूस करें

आतम अनुभव जब भयो तब नहीं हर्ष विषाद ॥
चित्रदीपसम है रहे, तजिकर वादविवाद ll

आत्मसाक्षात्कार के द्वारा ईश्वर के प्रेम की अलख को अपने भीतर महसूस करें

मालवा हेराल्ड |हमारी भारतीय संस्कृति आत्मोन्नति की बात करती है। अध्यात्म इस भूमि के कण-कण में बसा है। हमारे भारत देश में जितने भी संत हुए ऋषि - मुनि हुए, उन सभी ने स्वयं को प्राप्त इस आत्मसाक्षात्कार को जनसामान्य तक पहुँचाने का पूरा प्रयास किया। संत कबीर दास जी को जब आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ तो वह उस आनंद का वर्णन उन्होंने अपनी कविता में किया है। वे कहते हैं कि अपने आप के स्वरूप चैतन्य का यानि की हृदयस्थ आत्मा का जब अनुभव हो जाता है, तब हर्ष शोक नहीं रह जाते। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त व्यक्ति किसी से भी वाद-विवाद नही करता। वह व्यक्ति भीतर से शांत, करुणामयी, आनंदयुक्त होकर चित्र के दीपक की भाँति स्थिर हो जाता है।

प. पूज्य श्री माता जी श्री निर्मलादेवी प्रणित सहजयोग में उपरोक्त वर्णित आत्मानुभव लिया जा सकता है।सहजयोग अपने चित्त को अपने भीतर झाँकने की दिव्य कला सिखाता है।

श्री माता जी कहते हैं कि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है। आपका प्रथम स्वार्थ है ।स्वतः को जानना यानि अपनी आत्मा को जानना | जब सहजयोग में साधक को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है l तब उसे इसकी अनुभूति अपने सूक्ष्म शरीर पर, अपने हाथों की उँगलियो के छोरों पर और अपने तालुभाग पर होती है। आदि शंकराचार्य जी ने इसे सौन्दर्यलहरी, आनंदलहरी कहा है l उसे साधक जब स्वयं मे अनुभूति करता है l तो वो भी चित्र के दीपक समान स्थिर, शांत और निरानंदमयी हो जाता है।जब हमारा अहंभाव पोषित होता है l तब हमें सुख मिलता है, जैसे अगर किसी ने हमारी प्रशंसा की तो हमें सुख मिलता है, हमे ऊंचा पद, प्रतिष्ठा या संपत्ती प्राप्त हुई तो हमें सुख मिलता है l
परन्तु जब हमें कोई प्रताड़ित करता है, अपयश मिलता है तो हमारा -प्रतिअहंभाव पोषित होने से हमें दुःख होता है। परंतु आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होने के बाद हमें निरानंद प्राप्त होता है, तब हमे हर्ष और विषाद नहीं रहते, अर्थात् हम हमारे अहंकार और प्रति अहंकार पर विजय प्राप्त करते हैं, उनसे परे जाते हैं l तब हमें ये अल्हाद दायिनी चैतन्य लहरियाँ मिलती हैं। अमृतमयी आनंद देनेवाली अनुभूति को हम सहर्ष महसूस कर सकते हैं।
आपको भी अगर वाद-विवाद को त्यागकर चित्र के दीपक के समान स्थिर और निरानंदमयी होना है l तो आज ही सहजयोग ध्यान सीखें सहजयोग ध्यान आत्मा को पाने की ऐसी पद्धति है जिसमें सहजता से निःशुल्क आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है। अधिक जानकारी हेतु हमारे हेल्पलाइन नंबर 18002700800 पर कॉल कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।

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