सहजयोग द्वारा श्री गणेश तत्व व उसकी विशेषताओं का अनुभव प्राप्त करें
गणेश चतुर्थी के शुभ पर्व पर विशेष

मालवा हेराल्ड |
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजंबूफलचारु भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजं।।
जो हाथी के समान मुख वाले हैं, भूतगणादि से सदा सेवित रहते हैं कैथ तथा जामुन आदि जिनके प्रिय फल हैं, पार्वती के पुत्र तथा भक्तों के शोक का विनाश करने वाले हैं उन विघ्नेश्वर के चरण कमलों में सादर प्रणाम है।
श्री गणेश जी, जिनको उनके भक्त गणपति, विनायक, विघ्नहर्ता, बुद्धिप्रिया, एकदंत आदि अनेक नामों से पुकारते हैं जन जन के प्रिय हैं। आदिकाल से प्रथम पूज्य देव के रूप में श्री गणेश जी भारतीय संस्कृति में प्रतिस्थापित रहे हैं। उनकी व्यापकता को समझना सामान्य व्यक्ति के लिए अत्यंत कठिन है। परंतु सहजयोग संस्थापिका श्री माताजी निर्मला देवी जी ने गणेश तत्व की व्याख्या अत्यंत ही मनोहर रूप में हमें प्रदान की है व हम इसे सहज में ही सहजयोग ध्यान द्वारा अनुभव कर सकते हैं।
परम पूज्य श्री माताजी श्री गणेश तत्व की व्याख्या अपनी अमृतवाणी करते हुए कहा है की अपने मे जो कुछ गंदगी दिखाई देती है वह इस गणेश तत्व के कारण दूर हो जाती है अब इस श्री गणेश तत्व से पहले श्री गौरी कुंडलिनी का पूजन करना पड़ता है जब आप की कुंडलिनी का जागरण होता है तब श्री गणेश तत्व की सुगंध सारे शरीर में फैलती है कुंडलिनी का जागरण जब होता है उस समय खुशबू आती है अनेक प्रकार की सुगंध आती है इसका मतलब है कि जिन लोगों को सुगंध प्रिय नहीं है जिनको सुगंध अच्छी नहीं लगती है उनमें भयंकर दोष है क्योंकि सुगंध पृथ्वी तत्व का एक महान तत्व है तो श्री गणेश का पूजन करते समय प्रथम हमें अपने आप को सुगंधित करना चाहिए मनुष्य जितना दुष्ट होगा बुरा होगा उतना ही दुर्गंधी होगा | ऊपर से उसने खुशबू लगाई होगी तो वह मनुष्य सुगंधित नहीं है सुगंध ऐसी होना चाहिए की मनुष्य आकर्षक लगे किसी मनुष्य के पास जाकर खड़े होने पर अगर प्रसन्नता पवित्र आने लगे तो वह मनुष्य सच मे सुगंधीत है l
सहजयोग द्वारा हम अपने अंदर विराजित श्री गणेश तत्व को, आत्मसाक्षात्कार कुंडलिनी जागरण की ध्यान पद्धति से, जागृत कर सकते हैं। हमारे सूक्ष्म तंत्र में रीढ़ की हड्डी का अंतिम सिरा, जो (भूमि पर बैठते हैं तब जो शरीर का भाग) पृथ्वीमाता से स्पर्श हो रहा है, वहां स्थित चक्र को मूलाधार चक्र कहते हैं। सहजयोग में श्री माता जी निर्मला देवी की कृपा से हमारी निर्विचार चेतना से हमारे अंदर पवित्रता का विकास होता है। उपरोक्त बताई गई संक्षिप्त जानकारी का विस्तृत अध्ययन करने के लिए यदि साधक कोई भी प्रश्न अपने मन में रखता है तो वह हमारे टोल फ्री नंबर 18002700800 पर कॉल कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।